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'पृथ्वीराज रासो' में आई हुई लिङ्ग-परिवर्तन विषयक कथा, शिखंडी की कथा से मिलती-जुलती है, अस्तु हम पहले 'महाभारत' को कथा पर दृष्टि-पात् करेंगे। इस 'इतिहास-काव्य' के आदि-पर्व में काशी-नरेश की कन्या अम्बा, भीष्म द्वारा अपहृत होने पर शाल्व को पति-रूप में पूर्व ही स्वीकार किये जाने का आग्रह दिखाकर, इच्छानुसार जाने की अनुमति पा जाती है। उद्योग-पर्व में हम उसे शाल्व द्वारा तिरस्कृत, उसके लिये भीष्म से युद्ध में परशुराम की पराजय, भीष्म के वध हेतु उसकी तपस्या, अपने आधे शरीर से नदी और आधे ते वत्सराज की कन्या रूप में उसका जन्म, उसकी पुनः तपस्या और अगले जन्म में भीष्म का वध करने का उसे शंकर द्वारा वरदान का वर्णन पाते हैं। इसी पर्व में पढ़ते हैं कि पुत्र के लिये तप करने वाले राजा द्रुपद को शंकर ने वर दिया कि तुम्हारे एक कन्या पैदा होगी जो बाद में पुरुष हो जायगी। समयानुसार द्रुपद के शिखंडी नाम की कन्या हुई परन्तु पुत्र कह कर उसकी प्रसिद्धि की गई। वयस्का होने पर, शिव के वर से आश्वस्त राजा ने दशार्ण-कुमारी से उसका विवाह कर दिया। तब रहस्य खुल गया और अपमान का प्रतिशोध लेने के लिये दशार्ण में पांचाल पर चढ़ाई की जाने की योजना प्रारम्भ हो गई। माता-पिता पर विपत्ति देखकर शिखंडी वन में चली गई और वहाँ बहुत समय तक निराहार रहकर उसने अपना शरीर सुखा डाला, तब एक दिन स्थूणाकर्ण नामक यक्ष उसपर द्रवीभूत हुआ और उसने उसके स्वसुर हिरण्यवर्मा द्वारा उसकी परीक्षा तक, उसे अपना पुरुषत्व देकर उसका स्त्रीत्व ले लिया। इस आदान-प्रदान के बाद शिखंडी पांचाल लौट आया। इसी बीच स्थूणाकर्ण को कुबेर ने शिखंडी की मृत्यु तक स्त्री बने रहने का श्राप दे दिया। परीक्षा में शिखंडी पुरुष सिद्ध हुआ और युद्ध की विभीषिका समाप्त हो गई। तदुपरान्त स्थूणाकर्ता का पुरुषत्व लौटाने वह वन में गया और वहाँ आजीवन पुरुष बने रहने का प्रसाद पाकर हर्ष से लौट आया। यह वृत्तान्त बताकर भीष्म ने दुर्योधन से कहा—"द्रोण से उसने भी शिक्षा पाई है, द्रुपद का यह पुत्र महारथी शिखंडी पहले स्त्री था पीछे पुरुष हो गया है, काशिराज की ज्येष्ठा कन्या अम्बा ही द्रुपद कुलोत्पन्न शिखंडी है, यह यदि धनुष लेकर युद्ध के लिये उपस्थित होगा तो मैं क्षण भर भी इसकी और न देखूँगा और न शस्त्र ही छोड़ूँगा; हे कुरुनन्दन, मेरा यह व्रत पृथ्वी पर विश्रुत है, कि स्त्री, पूर्व स्त्री, स्त्री-नाम और स्त्री-स्वरूप वाले पर मैं बाण नहीं छोड़ता, इसी कारण मैं शिखंडी पर भी प्रहार नहीं करूँगा