पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२१५

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विद्या में सूर्य के प्रसिद्ध पुत्र रेवन्त से भी अधिक प्रवीण था।[१] कर में चापे ग्रहण करने, मन में हरि को धारण करने, बल में मान धारण करने तथा मंत्रियों द्वारा नय ( राजनीति) धारण करने के कारण वह इन गुणों के अलिम वर्णों से निर्मित चा-ह-ना-न' संज्ञा को प्राप्त हुआ :

करेश चापत्य हरेमनीषा
बलेन मानस्य नयेन मंत्रिभिः।
नामाग्रिमवर्णनिमितां घृतस्य
स चाहमानोयमिति प्रथां ययौ ॥४५,सर्ग २

वह वर्णन पढ़कर जहाँ एक ओर यह ध्यान है कि से प्रसूत होने वाले का रूप वर्णन करते हुए रासो में इतने अप्रस्तुत का विधान नहीं पाया जाता वहाँ दूसरी ओर एक स्वाभाविक प्रश्न भी उठता है कि जयानक ने चौहानों के मूल पुरुष 'चाहमान' को सीधे-सीधे सूर्यवंशी क्यों नहीं लिख दिया, क्योंकि सूर्यवंश प्राचीन और विश्रुत था, उसे उक्त पुरुष को सूर्य से उपर्युक ढंग से अतरण कराने की क्या आवश्यकता पड़ गई ? उत्तर स्पष्ट है। कर्नल टॉड द्वारा राजस्थान में अन्य क्षत्रियों की अपेक्षा चौहानों के पौष और पराक्रम की भर पेट कीर्ति अतिरंजित नहीं, लोकाfer अवश्य है। बाहर से आई हुई इस वीर जाति को यज्ञ आदि के द्वारा शुद्ध करके भारतीय बनाने का प्रयत्न अवश्य किया गया था। चंद ने चौहानों को अम्नि वंशी बताकर वस्तुतः सत्य का प्रकाश किया है जब कि ( संस्कृत ) 'पृथ्वीराज विजय' के कर्ता जयानक ने ही केवल नहीं वरन् उसके पूर्ववर्ती (संस्कृत) शिलालेखकार कवियों तथा परवर्ती ( संस्कृत ) 'हम्मीरमहाकाव्य' के कर्ता नपचन्द्रसूर और (संस्कृत) 'सुर्जनचरित्र - महाकाव्य'[२] के रचयिता चन्द्रशेखर ने उन्हें सूर्यवंशी बतलाकर एक ओर जहाँ अरन और सूर्य में तेज- रूप के कारण तत्वत: समानता का भाव होने से ( सूर्य द्वारा चाहमान की उत्पत्ति आशिक परिवर्तन सहित प्रस्तुत करके ) सत्य से विरत न होने का दावा किया वहीं दूसरी ओर उनका भारत के सुप्रसिद्ध इक्ष्वाकु कुल वाले रघुवंशियों से गौरवपूर्ण और महिमामय सम्बन्ध भी सही स्थापित कर दिया। वास्तव में चौहानों को सूर्यवंशी बनाकर संस्कृत कवियों की एक पन्थ दो काज सिद्ध कर लेने की कल्पना परम सराहनीय है। परन्तु इसके बाव-


  1. पृथ्वीराजविजय, सर्ग १, तथा श्लोक १-४४, सर्ग २:
  2. सर्ग ७, श्लोक ५८-६१ ;