पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२१६

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जूद लोक में चौहानों की ख्याति अग्निवंशी होने की ही चली जा रही है और स्वयम् वह जाति भी यही बात सर्व से स्वीकार करती है। देश्य भाषा की कृति 'पृथ्वीराजरासो' में चौहानों का अग्नि कुलीन उल्लेख अधिक ऐतिहासिक है |

'भविष्यपुराण'[१] भी वशिष्ठ के आबू-शिखर के यज्ञ-कंड से परमार, प्रतिहार, चालुक्य और चाहुवान क्षत्रियों की उत्पत्ति बताता है:

एतस्मिन्नेव काले तु कान्यकुब्जो द्विजोत्तमः ।
शिखरं प्राप्य ब्रह्म होममथाकरोत् ॥ ४५
वेदमन्त्र प्रभावाच्च जाताश्चत्वारक्षत्रिया: ।
प्रमर: सामवेदी च चपहा निर्यजुर्वेदः ॥४६
त्रिवेदी च तथा शुक्लोऽथर्वा स परिहारकः ।
ऐरावत कुले जातान् गजानारुह्य ते पृथक ॥४७

पृथ्वीराज की माता

रासो में लिखा है कि दिल्लीराज अनंगपाल तोमर ने अपनी कन्या कमला का विवाह अजमेर नरेश सोमेश्वर के साथ किया था :

अनग पाल पुत्री उभय ।इक दोनी विजपाल ॥
इक दीनी सोमेस कौं। बीज बवन कलिकाल ॥ ६८१
एक नाम सुर सुंदरी अनि वर कमला नाम ॥
दरसन सुर नर दुल्लही । मन सु कलिका काम ॥६८२, सं १,

[२]

  1. However, the text which has come down to us in manus- cript under the title, Bhavishya Purana, is certainly not the ancient work which is quoted in the Apastambiya- Dharam-sutra. The Bhavishya Purana, which appeared in Bombay in 1897 in the Srivenkata Press, has been un- masked by Th. Aufrecht as a literary fraud'. The account of the creation which it contrains, is borrowed from the law book of Manu, which is also otherwise frequently used. The greater part of the work deals with the brahmanical ceremonies and feasts, the duties of the castes and so on." A History of Indian Litera- ture. M. Winternitz, Vol. I, Cal. Uni., 1927, p. 567;
  2. बृहत रासो, समय १ के छन्द ६७१-८४ तक पंजाब विश्वविद्यालय के रोटो वाले रासो में नहीं हैं, जिसका प्रथम समय 'पृथ्वी-