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श्यकता इस बात की है कि उक्त वाचनायें आमूल प्रकाशित करवा दी जायें जिससे उन पर सभ्यक रूप से विचार करके एक निश्चित मत दिया जा सके । बृहत रासो पर तो अनेक विद्वानों ने विचार किया है परन्तु उसके अन्य छोटे रूपों को देखने और मनन करने का अवसर उनके संग्रह कर्तायों के प्रति- रिक्त विरलों के भाग्य में ही पड़ा है।

अनैतिहासिक कूड़े करकट के ढेर से श्रावृत्त 'पृथ्वीराज रासो' साहित्य


तरफ से छुपे हुए रासो में लिखा हैं, जो तत्कालीन शिलालेख के संवत् विरुद्ध है इत्यादि । लेकिन हमारे पास के रोटो वाले रासो में पाटन पर चढ़ाई आदि की घटना का वर्णन नहीं है, अतः कह सकते हैं कि छपे हुए उक्त रासो में प्रक्षेप है । एवं पृथ्वीराज की माता का नाम, पृथ्वीराज का जन्म संवत् यदि जिन जिन घटनाओं का उन्होंने (श्रोमा जी ने) उल्लेख किया हैं वे सब घटनायें हमारे पास के रोटो वाले रासो ('छन्द संख्या ग्रार्या छन्द से करीबन ७०००', 'असली पृथ्वीराज रासो' भूमिका, पृ० ३ ) में नहीं हैं और न हमारे पास के रासो में फारसी शब्द हैं। योभा जी कहते हैं कि रासो में दशमांश फारसी शब्द हैं, इसका भी पूर्णतया खण्डन इस पुस्तक के प्रकाशित होते ही स्वयं हो जायगा ।" महामहोपाध्याय पं मथुरा प्रसाद दीक्षित, सरस्वती, नवंबर, सन् १९३४ ई०, १०४५८ ;

(ब) "हम ऊपर बतला चुके हैं कि इस ( पृथ्वीराज रासो की बीकानेर- फोर्ट लाइब्रेरी को रामसिंह जी के समय की ४००४ छन्द प्रमाण वाली लगभग सं० १६५७ वि० की हस्तलिखित प्रति ) में दी हुई वंशावली विशेष शुद्ध नहीं है । रासो को प्राय: निम्नलिखित कथा- नकों के कारण कृत्रिम एवं जाती बतलाया जाता है:-

१- अग्निवंशी वृद्धियों की उत्पत्ति कथा |

२-- पृथाबाई और राणा संग्रामसिंह का विवाह।

३- भीम के हाथ सोमेश्वर की मृत्यु ।

४ -दाहिमा चामंड की बहिन, शशिवता एवं हंसावती आदि अनेक कन्याओं से पृथ्वीराज का विवाह ।

हमारी प्रति में इन सब कथाओं का अभाव है ।" डाँ० दशरथ शर्मा, पृथ्वीराजरासो की एक प्राचीन प्रति और उसकी प्रमाणिकता, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, कार्तिक १९६६ वि० (सन् १९३६३०), पृ० २८२