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विविध प्रमाणों के आधार पर अनैतिहासिक सिद्ध किये हैं[१] फिर भी इन पर और अधिक शोध की आवश्यकता है ।

पृथ्वीराज की रानी और कान्यकुब्ज की राजकुमारी संयोगिता का उल्लेख नागार्जुन, भादानक जाति, महोवानरेश परमर्दिदेव चन्देल, गुर्जरेश्वर भीमदेव चालुक्य द्वितीय और बाबू के धारावर्ष के साथ चौहान नरेश के इति हास प्रसिद्ध युद्धों का नाम तक न लेने वाले 'हम्मीरनहाकाव्य' और जयचन्द्र को सूर्यवंशी, मल्लदेव का पुत्र, नहोवा के मदनवर्मा को उसका चालान स्तम्भ यादि निरावार बातों का वर्णन करने वाली नाटिका रम्भामंजरी' में यदि नहीं है तो इसमें निराशा की कोई बात नहीं। डॉ० दशरथ शर्मा का सप्रमाण अनुमान उचित है कि 'पृथ्वीराजविजय' की तिलोत्तमा और 'सुर्जनचरित्र' की कान्तिमती ही रासो की संयोगिता है[२] जिसके कन्नौज से अपहरण का वृत्तान्त अबुल फजल ने अपनी 'आईने अकबरी' में भी दिया है । संयोगिता विषयक जनश्रुति इतनी प्रबल है कि अभी तक इतिहासकों द्वारा मनोनीत सुलभ साक्ष्यों के अभाव में भी उसे सत्य ही मानना पड़ता है ।

इनके अतिरिक्त 'पृथ्वीराज रासो' में प्रयुक्त किये गये संवत्, वंशावली, बीसलदेव विषयक वृत्तान्त, मेवाती मुगल युद्ध, भीमदेव चालुक्य के हाथ सोमेश्वर- वध, जिसके फलस्वरूप पृथ्वीराज द्वारा भीमदेव वध, समरसिंह के पुत्र कुम्भा का बीदर जाना, पृथ्वीराज की मृत्यु, अरबी-फारसी शब्दों का व्यवहार श्रादि कई अनैतिहासिक विवरणों की ओर संकेत किया जाता है । इन पर कोई निर्णय देने लगना वर्तमान स्थिति में उचित इसलिये नहीं दिखाई देता कि इस समय रासो की बार वाचनाओं की सूचना के साथ ही यह भी ज्ञात हुआ हैं कि उनमें इतिहास विरोधी अनेक निर्दिष्ट वर्णन नहीं पाये जाते हैं[३] ऋतु सत्यासत्य विवेचन और रासो कार्य बढ़ाने के लिये सबसे बड़ी श्राव-


मदनपुर का शिलालेख पृथ्वीराज को चंदेरी और महोबा का स्वामी सिद्ध करता है । श्रस्तु रासो के समय ३६ के पात्र कल्पित हैं। वही १० ६७७-७८५

  1. चन्दबरदाई का पृथ्वीराजरासो, सरस्वती, सन् १६२६ ३०, संख्या ५, पृ० ५६१-६२, संख्या ६, पृ० ६७६-७८;
  2. संयोगिता, राजस्थान भारती, भाग १, अङ्क २-३, जुलाई अक्टूबर, सन १६४६ ई० :
  3. (अ) "बीसलदेव का चढ़ाई करना आदि नागरी प्रचारिणी सभा की