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और देशी विद्वान् रासो की अनैतिहासिकता का नारा बुलंद कर चुके थे फिर भी उनका निर्णय सर्वमान्य नहीं था। भारत के विविध विश्वविद्यालयों में जहाँ कहीं हिन्दी पढ़ाने का प्रबन्ध था वहाँ हिन्दी - विभाग के अध्यक्ष ने रासो के अंश एम० ए० के पाठ्यक्रम में प्राचीन हिन्दी प्रश्नपत्र के अन्तर्गत अनि- वार्य रूप से सम्मिलित कर रखे थे | इतिहासानुरागी रासो का नाम लेते ही जहाँ नाक-भौं चढ़ाने लगता था वहाँ हिन्दी-साहित्य-सेवी उसे अपने साहित्य- कोष की अमूल्य निधि मानता हुआ उस पर गर्व करता था। दोनों पक्ष अपने अपने तर्कों और भावना में अटल थे । सन् १६३६ ई० में मुनिराज जिन- विजय जी द्वारा शोधित रासो के चार अपभ्रंश छन्दों ने स० म० गौरीशंकर हीराचंद श्रोमा सह इतिहासकार को भी रासो पर अपना पूर्व मत अंशत: परिवर्तित करने के लिए विवश कर दिया था । म० स० पं० मथुराप्रसाद दीक्षित और प्रभा जी के रासो विषयक उत्तर प्रत्युत्तर में सरस्वती और सुधा में प्रकाशित संघर्षात्मक लेखों ने इस काव्य पर पुन: विचार हेतु नवीन प्राण फूके । परन्तु सन् १६३६ ई० तक भावना-चेतन करने वाली इस सामग्री के अतिरिक्त 'पृथ्वीराज रासो' पर कार्य के सहारे के लिये उसका 'सभा' द्वारा प्रकाशित वृहत् रूपान्तर मात्र हो सुलभ था । ७००० छन्द संख्या प्रमाण वाले रासो की चर्चा तो छिड़ी परन्तु यथेष्ट यत्न करने पर भी उसके दर्शन न हो सके | अस्तु विवश होकर डॉ० झोर्नले द्वारा सम्पादित रासो, सभा प्रकाशित रासो और बम्बई विश्वविद्यालय तथा रॉयल एशियाटिक सोसाइटी बाम्बे ब्रांच के बृहत् रासो के हस्तलिखित ग्रन्थों से 'रेवातट सम्यो २७' के पाठान्तरों का उल्लेख करते हुए, और उनमें से अधिक अर्थ संगत को प्रधा- नता देते हुए, रासो का वर्तमान 'रेवातट' प्रस्तुत किया गया। डॉ० ह्योर्नले द्वारा 'रेवाट सम्बो' के अनुवाद में निर्दिष्ट ग्रन्थों को मूल रूप में देखकर तथा सन् १६४९ ई० तक प्रकाशित अन्य सम्बन्धित, सुलभ और उपयोगी ग्रन्थों से भी सहायता ली गई तथा इंडियन ऐन्टीक्वेरी और जर्नल ग्राव दि रायल एशियाटिक सोसाइटी या बंगाल के ग्रहों में प्रकाशित श्री ग्राउन और जॉन बीम्स के इस प्रस्ताव के आशिक अनुवाद में पोर्नले से यत्र-तत्र भेद का भावार्थ में यथास्थान उल्लेख कर दिया गया ।

'रेवाट प्रस्ताव' में अपने गुप्तचरों द्वारा दिल्लीश्वर पृथ्वीराज चौहान कोरेषा (नर्मदा ) नदी तट स्थित वन में मृगवान्मग्न सुनकर शहाबुद्दीन का सदल-बल आक्रमण और पृथ्वीराज के शी ही पलट कर उससे मोर्चा ने और रण में उसकी सेना को विच्छिन्न करके उसको बन्दी बनाने का