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क्या कारण है ? चंपापुरी अंगदेश के जिले चंपा की राजधानी थी और लोहि- ताक्ष सरोवरवाले वन खंड में पालकाव्य ऋषि रहते थे, जो इसी अंग देश के अंतर्गत था ( कवित्त ६ ) । किसी ने पालकाव्य को उनके प्यारे हाथियों की इस अवस्था का समाचार अवश्य दिया होगा ( चंद कवि ने यह नहीं लिखा कि पालकाव्य को हाथियों की चिकित्सा करने के लिये किसने बुलाया १ ) । यह भी संभव है कि मुनि पालकाव्य वैद्यकशास्त्र के ख्यातनामा जानकार रहे हों या चाहे धन्वंतरि ही हों । साथ-साथ रहने से तो प्रीति होती ही है परन्तु पालकाव्य की माँ हस्तिनी थी इसलिए उनमें और हाथियों में भ्रातृप्रेम का होना भी स्वाभाविक है। समाचार मिला कि हाथी बीमार हैं, प्रेम ने ज़ोर मारा, पालकाव्य चंपापुरी पहुँचे और हाथियों को चिकित्सा द्वारा अच्छा कर दिया ( "कुंजर करि थूलयं तनं" ) । अगले दूहा १० में लिखा है कि-तार्थ तिन मुनि करिन सबंध प्रीति अत्यंत - यहाँ 'करिन' बहु वचन है अतएव जैसा 'रासो-सार' के लेखकों ने एक वचन का अर्थ लिया है, वह असंगत है।

दूहा

-तार्थ[१] तिन मुनि करिन सों, बंधि प्रीति अत्यंत ।
चंद कयौ नृप मिथ्य सम, सकल मंडि बिरतंत[२] ॥ छं०। रू० १०।

[ संभवत: चामंडराय का कथन -]

कवित्त

"सुनहि राज प्रथिराज, बिपन रवनीय करिय जुथ।
रेवाट सुन्दर समूह, वीर गजदंत चवन रथ ॥
आपेटक अचंभ पंथ, पावर रुकि षिल्लौ ।
सिंघवट्ट दिलि समुह राज पिल्लत दोइ चल्लो ॥
जल जूह कूह कस्तूरि मृग पहपंषी[३] अरु परबतह[४]
हुन मान देषे नृपति कहि न बनत दच्छिन सुरह। "छं० ११। रू० ११।

भावार्थ- रू० १० यही कारण था कि मुनि को हाथियों से अत्यन्त प्रीति हो गई थी ।" ( इस प्रकार ) चंद (कवि ) ने महाराज पृथ्वीराज से सारा वृत्तांत कहा ।

नोट- कवित्त में कहने वाले का नाम नहीं दिया है । परन्तु जो कुछ कहा गया है उससे यही अनुमान होता है कि ये चामंडराय के वचन हैं—


  1. ना० - तार्थे
  2. ना०--वरसंत
  3. ना०- पहपंगी
  4. ना० पर्वतह