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थे। अनेक युद्धों में पृथ्वीराज की सेना के एक भाग का संचालन पज्जून की यक्षता में हुआ था। भारत के उत्तरी आक्रमणों में दो वार पज्जून अपनी वीरता का परिचय दे चुका था। एक बार उसने शहाबुद्दीन को ख़ैबर के दरें में पराजित किया और गज़नी तक खदेड़ा था। चंदेल राज महोबा की विजय ने पज्जून की वीरता की धाक बैठा दी थी। पृथ्वीराज की एक बहिन 'पज्जून को ब्याही थी और चौहान नरेश ने उसे महोबा का शासक बना दिया था। कन्नौज के संयोगिता अपहरण वाले युद्ध में चुने हुए चौंसठ सरदारों में पज्जून भी था और लौटते समय पाँच दिन के युद्ध में प्रथम दिन वीर गति को प्राप्त हुआ था। यह घूँघर या हुँडार का अधिपति था[ Rajasthan. Tod. Vol. II, pp. 249, 350-361]। परन्तु ६५वें सम्यौ में हम पढ़ते हैं कि पज्जूनी पृथ्वीराज की तेरह रानियों में आठवीं विवाहिता रानी थी । पृथ्वीराज ने अठारहवें वर्ष की आयु में पज्जूनी से विवाह किया था -[“अठारमैं बरस चहुनान चाहि । कछवाह वीर पज्जून व्याहि । इक मात उदर धनि गरम सोय। बलिभद्र कुंअर जाप संदीप ॥ सम्यौ ६५, छंद ]। यदि ये दोनों पज्जून एक ही हैं जैसा कि टॉड और ह्योर्नले दोनों महानुभावों का कहना है तो पृथ्वीराज ने अपनी सगी भानजी से विवाह किया। परन्तु ऐसी प्रथा न होने से शंका उत्पन्न होने लगती है अस्तु इन दोनों पज्जूनों में अवश्य भेद होना चाहिये। [ कछवाहों के वि० वि० के लिये देखिये - Races of N. W. Provinces. Elliot ( edited by Beams ). Vol. I, pp. 157- 59 ]। राव परसंग = इसे कीची प्रसंग भी कहते हैं । प्रसंग राव कीची चौहान वंशी कीची प्रशाखा का था [ Rajasthan. Tod Vol. I, pp. 94-97 और भी वि० वि० देखिये - Hindu Tribes and Castes, Vol. I, pp. 160, 168 ]। यह पृथ्वीराज के वीर सामंतों में था और संयोगिता अपहरण वाले युद्ध में बातों में से एक था[ रासो सम्यो ६१ ]। देवराव are = यह बागरी राव या बागरी देव के नाम से विख्यात है और बागरी जाति का राजपूत था। बग्गरी जाति का पता अब कम चलता संयोगिता हरण वाले युद्ध के ग्राहतों में बग्गरी राव भी था[ बग्गरी जाति के वि०वि० के लिये देखिये - Asiatic Journal. Vol 25, p. 104]। मुसक्यौ मुसकुराया। सैन दे= इशारा करते हुए ।पाव-पैर। कसक्यौ = खींचा। भारथ्थी < भारती वीरोचित वाणी। उड्डत उड़ते ही। चंपि= चौपकर, दाबकर। मुष्य < मुख। मुष्याँ लग्यो बिलकुल सामने (सिर पर) आ गया है। दल बानिबौ = दल बनाये (या सजावे)। भर भीर= भारी भीर