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नोट - इस कवित्त की अंतिम चार पंक्तियों का अर्थ धोर्नले महोदय इस प्रकार करते हैं-

"हमारी शक्ति क्षीण हो गई है इसको याद रखिये और अंत भी सोच लीजिये । शरीर से शरीर भिड़ाकर लड़िये और मुक्ति प्राप्त कीजिये । गोरी अपना दल बड़ी युक्तिपूर्वक सजाया है परन्तु युद्ध छिड़ने पर पृथ्वीराज की शक्ति उसके बरावर है अतएव श्राप युद्ध करने का दृढ़ संकल्प कर लीजिये या इस समय स्वयं अपने में फूट न डालिये । "

कवित्त

सुनिय वत्त पज्जून राव परसंग मुसक्यौ[१]
देवराव बग्गरी, सैन दे पाव कसक्यौ ॥
तन सट्टै[२] र सटि मुकति, बोल भारथ्यो बोलै ।
लोह अंच उड्डत, पत्त तरखर जिमि डोलै ॥
सुरतांम कांपी मुष्यां[३] लग्यौ, दिल्ली नप दल बानियो ।
भरभीर धीर सामंत पुन, अबे पटंतर जानिव ॥ छं०२४ ॥ रू०२४॥

भावार्थ- रू० २४ - पज्जून की ( उपर्युक्त ) बातें सुनकर प्रसंग राव मुसकुराया और देव राव बग्गरी ने इशारा करते हुए अपना पैर खींचा ( समेटा ) तथा व्यंग्य पूर्वक कहा - "इस तरह आपस में मेल करके पीछा छुड़ाना क्या ही वीरोचित वाक्य हैं ? [ 'शरीर से शरीर सटाकर वीर गति प्राप्त करने का उपदेश क्या ही वीरोचित वाणी है'-- ह्योनले |] (स्वयं तो ) जब लोहे से लोहा बजकर आँच निकलती है तो वृक्ष के पते सदृश डोलने (काँपने लगता है [अर्थात्-सामने युद्ध होते देख काँपने लगता है ।] सुलतान चढ़कर हमारे सर पर आ गया है। दिल्लीराज भी एक सेना तय्यार कर लें । कठिन मोर्चों पर धैर्य धारण करने वाले हमारे सामंत ( इस गिरी अवस्था में) अब भी उनसे कम नहीं हैं ।" ["दिल्लीराज भी एक सेना अवश्य तय्यार कर लें । शत्रु सैनिकों की संख्या और अपने सामंतों की वीरता बराबर ही समझना चाहिये ।' पोर्नले ]

शब्दार्थ - रू० २४ – सुनिय= सुनकर । वत्तबात । पज्जून == यह या जयपुर के कछवाह राजपूतों की एक शाखा कूर्म या कूरंभ वंश का था । वीर चौहान ने ख्यातनामा एक सौ आठ सरदार उसके साथ कर दिये


  1. मो०- सुसक्यौ
  2. ए०-सटि
  3. नां०—मुषां ।