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कवित्त

षां मारूफ ततार, पान खिलची बर गट्टे ।
चामर छत्र मुजक्क, गोल सेना रचि गट्टे ॥
नारि गोरि जंबूर, सुबर कीना गज सारं ।
नूरी षां हुज्जाब, नूर महमुद सिर भारं ॥
वजीर षांन गोरी सुभर, षांन षांन हजरति षां ।
वि सेन सब्जि[१] हरबल करिय, तहाँ उभौ सजिरति षां ।। छं ०४२ ।रू० ३८।

भावार्थ - रू० ३६ - उसी समय बाबस्तु नृप द्वारा ( पृथ्वीराज के पास ) मेजा हुआ दूत आया और बोला कि योद्धा गोरी ने सेना सजाकर (चिनाब ) नदी पार कर ली है।

रू० ३७ - [दूत का वर्णन कि गोरी ने किस प्रकार चिनाव नदी पार की ] - हे नृपति, गौरी ने अपनी सेना को पाँच भागों में बाँटकर नदी पार की और उतरने के बाद वे पाँचों भाग फिर एक में बँध (= भिल ) गये ! वीर चंद पुंडीर ने अपने साथियों सहित ( गोरी से ) डटकर मोर्चा लेने के लिये (अपने स्थान से) प्रस्थान किया ।

रू० ३८- तातार मारूफ खाँ और खिलची खाँ मिल गये । सेना को म्यूह बद्ध किये वे खड़े थे; उनके ऊपर चँवर और छत्र था जिसके द्वारा वे पहिचाने जा सकते थे । (या - विशेष छत्र और चमर सहित वे सेना के गोल बनाये हुए खड़े थे ) । हुजाब नूरी खाँ तथा नूर मुहम्मद को बड़ी तोपों, गोलों, छोटी तोपों और हाथियों के विभाग का उत्तरदायित्व सौंपा गया। गोरी के बीर योद्धा वज़ीर खाँ ने और खानखाना हजरन्ति खाँ ने दूसरी सेना का हरा- बल सजा दिया । वहीं सजरत्ति (= शनरत ) खाँ भी उपस्थित था ।

शब्दार्थ- रू० ३६ - बावस्तू यह पृथ्वीराज के किसी सामंत का नाम जान पड़ता है जो चंद पुंडीर के साथ चिनाव नदी के तट पर गोरी से मोर्चा लेने के लिये खड़ा था । 'सामंत चार भागों में विभाजित थे उनमें एक भाग का नाम बबस ( = पैदल ) था और 'बबस' चौहान वंश की प्रशाखा की एक शाखा के राजपूत हैं" (Rajasthan. Tod Vol. I, p. 142 ) । "यह भी संभव है कि 'बाब्बसू' चंद पुंडीर द्वारा भेजे हुए दूत का नाम हो” – ह्योर्नले । मुक्कतें < मुख ते=ोर से । सुबर= सुभट, श्रेष्ठ योद्धा । नदि= नदी ( चिनाब )।


  1. ना०- बिय सजि सेन ।