पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२८२

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परन्तु असफल रहा। उसने नौकरी कर ली। अंत में अपने देश के शत्रु सुलतान गोरी के यहाँ इसीलिए शहाबुद्दीन के अन्य अफसरों के साथ उस का भी नाम आया है । 'तबकाते नासिरी' में उसकी बड़ी प्रशंसा की गई है। पच्छिमीन = यह पश्चिमी दिशा का ख़ाँ हो या संभव है कि इसका नाम पश्चिम ख़ाँ ही रहा हो । पद्वान सह पठानों के साथ । बिहर = दगाबाज़।

रू० ४० – गष्णर-पृथ्वीराज रासो में गब्बर और घोर दो नाम अनेक स्थलों पर आये हैं। ये दो भिन्न पहाड़ी जातियाँ थीं । अनेक लेखकों ने खोक्खर और क्खर को एक ही मान लिया है। खोक्खर और गखर का मतभेद रैवर्टी महोदय ने 'तबकाते नासिरी' के अनुवाद पृष्ठ ४८४, ५३७, ११३२, ११३६ की टिप्पणियों में बिलकुल मिटा दिया है। अंत में व्याप लिखते हैं-

“Khokhars are not Gakhars, I beg leave to say, although the latter are constantly confounded with them by writers who do not know the former." Tabaq- at--i-Nasiri. Raverty, p. 1136, note 7.

'आइने अकबरी' में Blochmann ने पृष्ठ ४५६, ४८६ और ६२१ में तथा History of the Rise of the Mahomedan Power in India till.... 1612 (Firishta) Briggs ने pp. 182-86 में खोक्खरों का हाल लिखा है परन्तु उन्हें खोक्खर न कहकर गक्खर कहा है । [शक्रों की जाति-पाँति का पता नहीं चलता । यह बर्बर जाति गज़नी और सिंधु नदी के बीच की पहाड़ियों में रहती थी । सन् १०१५ ई० में ये मुसलमान बना लिये गये थे । गोरी को इन्होंने बड़ा कष्ट दिया और अंत में सन् १२०६ ई० में सिंधु तट के रोहतक ग्राम में रात्रि में सोते समय अचानक उसकी हत्या कर डाली।...." Briggs. ( Firishta ) Vol. I, pp. 18286]। सुलतान गोरी ने खोक्खरों का दमन किया था [Tabaqat i-Nasiri. Raverty. pp. 481-83–“उस समय लाहौर और जूद की पहाड़ियों पर रहने वाली पहाड़ी जातियों ने जिनमें स्वेच्छाचारी खोक्खर भी थे विद्रोह किया । उसी वर्ष जाड़े की ऋतु में सुलतान हिन्दुस्तान आया और इसलाम के नियमों के अनु- सार युद्ध करके उसने इन विद्रोहियों के रक्त की नदी बहाई...."] | चंद ने रासो में गवखरों को सुलतान गोरी के पक्ष वाला ही कहा है । रासो सम्यो ६१ मैं हम गब्बरों को जयचंद की ओर से लड़ते हुए पाते हैं । जहाँ तक मेरा अनु मान है चंद बरदाई ने भी भ्रमवश खोक्खरों और गक्खरों को एक ही समझ लिया। वे 'गब्बर' लिखकर 'बोरों' का ही वर्णन करते हैं ।