पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(४५)

साह सारी दल षष्पर=शाह का जिरह स्तर वाला दल ( या सेना ) ।' भट्टी - राजपूतों की एक जाति जो ई० सन् १५ में ग़ज़नी से आई और पंजाब में बसी तथा वहाँ से पश्चिमी राजपूताना पहुँचकर सन् ७३१ ई० में तनोट बसाया । कुछ समय तक लोडोरवा उनकी राजधानी थी। सन् १९५७ ई० में जेसल ने अपने भतीजे भट्टी ( रावल ) का राज्य गोरी की सहायता से छीन लिया और नई राजधानी जैसलमेर की नींव डाली (Rajasthan Tod. Vol. II. pp. 219, 232, 238, 242-43 ) । वर्तमान रेवातट सम्यौ वाले युद्ध काल में जेसल का पुत्र सालवाहन राज्य कर रहा था और उसका भाई श्रन्विलेस पृथ्वीराज का मुख्य सामंत था । भट्टी महनंग, सालवाहन का दूसरा सम्बन्धी था जिसका वर्णन प्राय: पृथ्वीराज की ओर मिलता है— [परि भट्टी सहनंग | छत्र नौ रि सक्किय ॥ रासो सम्यौ ३२, छंद ७७ ] | इसका पिता गोरी का सामंत था । गोरी के पक्ष का होने के कारण ही चंद ने 'भट्टी महनंग' के पहिले 'ब' लगा दिया है । पुरसानी < खुरासान देश का । बब्बर < बबर (शेर ) । हवस ( व हबसी ) <० अम्बर गर्वं । आलम्म < आलम=संसार । सरक= श्रवित होना, चूना । पट्ठेतिनां कन- पटी ( ब० व०) १ डा० ह्योनले संभवत: 'पट्टेतिनां' से 'तलवार चलाने वाले ' अर्थ लेकर इस पंक्ति का अर्थ इस प्रकार करते हैं - In front of them are eight elephants before whose rage swordsmen give way. ' पंच= पंच तत्व ( क्षिति, जल, अग्नि, श्राकाश और वायु) । पिंड शरीर । जुद्ध = (१) युद्ध (२) योद्धा । लज्जी = लज्जा ।

कवित्त

करि तमा इ चौ साहि[१], तीस तहँ रषि फिरस्ते ।
आलम षां आलम गुमांन[२], षांन उजबक निरस्ते ॥
लहु मारूफ गुमस्त, पान दुस्तम बजरंगी ।
हिंदु सेन उप्परे, साहि बज्जै रन जंगी ॥
सह सेन दारि सोरा रच्यौ, साहि चिन्हाब सु उत्तरयौ ।”
संभले सूर सामंत नृप , रोस बीर बीरं दुग्यौ ॥ छं० ४५ । रू० ४१ ॥

दूहा

तमसि तमसि सामंत सब, रोस भरिंग प्रिथिराज ।
जब लगि रुपि पुंडीर ने रोक्यौ गोरी साज ॥ छं० ४६ । रू० ४२ ॥


  1. ए० - करत भाइ चौसाहि;ना०- करितं माय बहु साहि
  2. ना०-- श्रलभ पान गुमान । ।