पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२८८

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दिष्षि दूत वर चरित, पास आयो चहुयानं ।
[ तौ ] उप्पर गोरी नरिंद, हास बढ्ढी सुरतानं ॥
बर मीर वीर मारूफ दुरि, पंच अनी एकठ जुरी ।
मुर पंच[१] को लाहौर तें, मेच्छ मिलानह सो करी ॥ छं० ५२ । रू ०४४।

दूहा

वीर रोस बर बैर वर, झुकि लग्गौ[२] असमांन ।
तौ नन्दन सोमेस को, फिरि बंध सुरतांन ॥ छं० ५३ । रू० ५४।

दूहा

चंद्रव्यूह नृप बंधि दल, धनि प्रथिराज नरिंद्र।
साहि बंध सुरतांन सों, सेना बिन विधि कंद ॥ छं० ५४ । रू० ४६।

भावार्थ- रू० ४४ - पुंडीर वंशियों की घायल लोथों पर शाह ने चिनाब नदी पार की। पाँच भाइयों के सुन्दर पथ ग्रहण करने पर (अर्थात् मरने पर या वीरगति प्राप्त करने पर) चंद पुंडीर ने मुकाबिला छोड़ दिया । यह वीर चरित्र देखकर एक दूत चौहान के पास गया और यह समाचार दिया कि गोरी आप के बिलकुल ऊपर आ गया है और सुलतान ( को अपनी शक्ति ) का हौसला बढ़ गया है। श्रेष्ठ धैर्यवान वीर मारूफ ख़ाँ ने शीघ्रता पूर्वक पाँचों सेनायें एकमें कर ली हैं और म्लेच्छ ( मारूफ ख़ाँ) ने यह मिलान लाहौर से पाँच कोस आगे किया है [ तात्पर्य यह कि स्लेच्छ सेना लाहौर के बिलकुल समीप आ गई है ]।

रू० ४५—वीर (पृथ्वोराज) का क्रोध और वैर धधक उठा ( जल उठा ) ( और उसकी ज्वाला) आकाश को छूने लगी- [ वीर का क्रोध प्रबल हो आकाश में लग गया -धोर्नले ] ( और उसने कहा ) 'अब मैं गोरी को फिर बाँध लूँ तभी सोमेश्वर का बेटा हूँ।'

रू० ४६–[यह बचन सुनकर ] नृप की चन्द्राकार व्यूह में बँधी सेना ने पृथ्वीराज को धन्य धन्य कहा । और उन्होंने ( सैनिकों ने ) क़सम खाई ( प्रतिज्ञा की कि सुलतान की सेना को छिन्न भिन्न करके शाह को बाँध लेंगे ।

[ह्योर्नले महोदय के अनुसार यह अर्थ है कि स्वनामधन्य महाराज पृथ्वीराज ने अपने सामंतों को चन्द्राकार व्यूह बनाकर खड़ा किया परन्तु सुल- तान शाह ने अपनी सेना को अस्त व्यस्त बिना किसी व्यूह के ही रहने दिया ।]

शब्दार्थ - रू० ४४ - चिन्हाब = (चिनी + प्राब) चिनाब ( फारसी ) | घाय पुंडीर लुथ्थि पर==पुंडीर वंशियों की घायल लोथ पर। उप्पार्थी =


  1. ए० -खंच
  2. ना०-लग्गे ।