पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(५१)

(अपना खीमा) उखाड़ दिया; अपनी रोक हटा दी। पंच बंध = पाँच बाँध के। सुपध्धधर= सुन्दर पथ ग्रहण करने पर अर्थात् मरने पर । दिपि = देख कर । तौ उप्पर=तुम्हारे बिलकुल ऊपर। हास बढ्ढी (< यास बढ़ी-- हौसला बढ़ गया है); हास्य बढ़ गया है। बरमीर = श्रेष्ठ नायक । दुरि= दौड़ कर, जल्दी से । पंच अनी = पाँच सेनायें । एकउ जुरी = एक कर लिया । मुर मुड़कर, पीछे । मिलानह = मिलान ।

रू० ४५ –वीर = योद्धा पृथ्वीराज । वर== श्रेष्ठ । बैर= शत्रुता | बर= बरने (जलने लगा, धधक उठा । असमान < फा० (shaj (आकाश) । भुकिं बढ़ कर । तौ नंदन सोमेस को = तभी सोमेश्वर का बेटा हूँ । बंध बाँध लू | रू० ४६--सों <सौंह < सौगंद = कसम ( प्रतिज्ञा की ) । सेना बिन = सेना रहित । द्विधिकंद = कर डालना ।

कवित

बर मंगल पंचमी[१] दिन सु दीनौ प्रिथिराजं[२]
राह केतु[३] जप[४] दीन दुष्ट दारे सुभ कार्ज ॥
अष्ट चक्र जोगिनी भोग भरनी सुधिरारी[५]
गुरु पंचमि[६] रवि पंचम श्रष्ट मंगल नृप भारी ।।
कैइन्द्र बुद्ध सारथ्य भल कर त्रिशूल चक्राबलिय।
सुभ वरिय राज बर तीन वर चढ्यौ उदै कूरह बलिय ॥

भावार्थ - रू० ४७ - पंचमी तिथि मंगलवार को पृथ्वीराज ने चढ़ाई की आज्ञा दी। शुभ कार्य में दुष्ट फल को टालने के लिये (महाराज ने राहु और केतु का जप कराया । [इस पंचमी तिथि को ] ( शुभ फल देने वाली ) अष्टचक्र योगिनी तथा ( हनन कार्य के कारण शुभ) भरणी नक्षत्र युद्ध में शुभ फल देने वाले थे । [शुभ फलदायक ] पंचम स्थान में गुरु तथा सूर्य थे, और नृप के लिए अशुभ [ परन्तु शुभ होने वाले ] अष्टम स्थान में मंगल थे । युद्ध में भला करने वाले केन्द्र स्थान में बुध व थे जो हाथ में त्रिशूल चिन्ह और मणिबंध में चक्र वाले के लिये शुभ थे । इस शुभमिती से लाभ उठाकर, क्रूर और बलवान ग्रह (सूर्य या मङ्गल )के उदय होने पर महाराज ने चढ़ाई बोल दी।


  1. हा० - पंचमि सजुद्ध
  2. हा०—प्रथिराज
  3. हा० और ना०--केत।
  4. ना०- जय
  5. सुभ रारी
  6. ना० - पंचम