पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/२९१

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( ५३ ) उपर्युक्त दी हुई कुंडली के द्वादश स्थानों के फला देश को कहने के लिए इन स्थानों की संज्ञा हुई जो इस प्रकार है :- लग्न, चतुर्थ, सप्तम और दशम [ल च स द ]- इनकी केन्द्र संज्ञा है । द्वितीय, पंचम, अष्टम और एकादश- इनकी पाफर संज्ञा है । तृतीय, षष्टम नवम और द्वादश- इनकी आपोक्तिम संज्ञा है । ( १ ) अष्ट चक्र योगिनी —— पृथ्वीराज को पश्चिम जाना था और योगिनी ( जो तिथि के अनुसार विचारी जाती है ) पंचमी तिथि को ज्योतिष के अनुसार दक्षिण दिशा में स्थित थी, अतएव पृथ्वीराज के बाम भाग में पड़ और काशी नाथ भट्टाचार्य विरचित 'शीघ्र बोध' के श्लोक - योगिनी सुखदा बामे पृष्ठे वांछितदायिनी । दक्षिणे धनहंत्री च संमुखे प्राणनाशिनी ॥ के अनुसार शुभ हुई। (२) भरणी नक्षत्र भरणी नक्षत्र यात्रा के लिये अशुभ है । यथा-- पूर्वासु त्रिषु याम्यर्क्षे ज्येष्ठायां रौद्रभौरगे । सर्वाशासु गते यात्रां प्राणहानिर्भविष्यति || ११ | ६, टीका ॥ ( यात्रा प्रकरण ) 'मुहूर्तचिन्तामणि' । उस दिन भरणी नक्षत्र का भोग था और मंगलवार था अस्तु दोनों की उम्र ( क्रूर) संज्ञा थी । यथा------ पूर्वाश्रयं याम्यमधे उयं क्रूरं कुजस्तथा । तस्मिन्याताग्निशास्यानि विषशास्त्रादि सिध्यति ॥ २ ॥ ४ ॥ ( नक्षत्र प्रकरण ), मुहूर्तचिंतामणि, रामदेवज्ञ । परन्तु यहाँ युद्धरूपी हनन कार्य था इसीलिए भरणी नक्षत्र शुभ हुआ । यथा---'"पूर्वात्रित मित्रभ्यमुग्राख्यमिदं च पंचकं जाम्बम् मारणभेदनबन्धनवित्र- हननं पंचमे कार्यम” (वशिष्ठ ) — और पृथ्वीराज ने यात्रा की । (३) पंचम स्थान के गुरु — पंचमस्थ गुरु त्रिकोण में थे इसलिए लक्ष दोषों के नाश करने वाले थे । यथा- त्रिकोणे केन्द्रे वा मदनरहिते दोषशतकं हरेत्सौम्यः शुक्रो द्विगुणमपि लक्षं सुरगुरुः |....। ६ । ८६ ॥ (विवाह प्रकरण), मुहूर्तचिंतामणि' । पंचमस्थ गुरु इसी से शुभ हुए। (४) पंचम स्थान के सूर्य पंचमस्थ सूर्य सिंह राशि के थे और उस राशि के स्वामी भी थे इसलिए शुभ फल देने वाले थे । यथा-यौ यौ भाव: स्वामी सौम्याभ्यामदृष्टी युक्तोय मेधते " -- (जातक) 1