पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३००

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भावार्थ – रू० ५० – जब प्रात:काल हुआ और रात रक्कमय दीखने लगी [ऊषाकाल देख पढ़ा], चंद्रदेव मंद होकर अस्त हो गये तब तामसिक वृति वाले योद्धा क्रोध से भर गये । नगाड़ों के जोर जोर बजते ही वीरों में वीर वर्ण अंकुरित हो उठा, पृथ्वी काँपने लगी पर जब चारणों ने कड़खा गाया तो कायरों की दृष्टि भी रौद्र व वीर रस पूर्ण हो गई (उनकी आँखों से भी वीरता टपकने लगी, जोश बढ़ आया) । हाथियों के घंटे घनघोर शब्द करते हुए बजने लगे और जंजीरें खनखनाने लगीं । [ पृथ्वीराज के चाचा ] कन्ह को हाथियों और धन का दान करते देखकर युद्ध के नगाड़े बजने लगे (जिसे सुन कर) बीर गरजने लगे और (ब्राह्मण) मंत्रोच्चार करने लगे । उस स्थान पर नृप [पृथ्वीराज ] का दल दुर्जनों का नाश करने के लिये अद्भुत रूप से सुसज्जित हुआ । शूरों के शिरस्त्राणों पर लगे हुए उड़ते तुरें उनके सिर पर उसी प्रकार से गिरते थे जैसे मानो सूर्य के हस्त नक्षत्र में स्थित होने से चंपा और कमल फूल 'बिखर गये हों । श्रेष्ठ वीरों की पंक्तियाँ योगियों की पंक्तियों सहश थीं और कवि को ऐसी उपमा जान पड़ी कि मानो वे (योद्धा, योगियों की भाँति ) माया मोह और छोह का परित्याग कर तलवार की धार रूपी तीर्थ स्थान पर (की ओर) दौड़ रहे हों (क्योंकि योद्धाओं के लिये तलवार की धार से मरना ही तीर्थ है ] | सांसारिक श्रृंखलाओं में अपने हाँथों (अपने श्राप ) हाथी सहश जंजीरों से जकड़ा जाकर जिस प्रकार योगी अपनी प्रबल तपस्या द्वारा उन्मत्त हाथी के समान मोहरूपी जंजीरों को तोड़कर देवतुल्य यानन्द प्राप्त करता हैं उसी प्रकार सामंतों का स्वामी वृक्ष के पतों सदृश पृथ्वी (अर्थात् पृथ्वी पर रहने वाले दुष्टों) को कुचल कर विजय प्राप्त करता है।

शब्दार्थ - रू० ५०- रतिय <रात्रि = रात । जु जब । रत <रक्त । रक्त दीसय = रक्त वर्ण दीखने लगी अर्थात् ऊषाकाल देख पड़ा। चंद < सं० चंद्र। मंद-मंद होकर। चंदयौ =ग्रस्त हुआ । तमस क्रोध । तामस सूर तामसिक वृत्ति वाले योद्धा । रास तामस = रौद्र और वीर रस । हृदयौ गान । वीर वरन <वर वर्णं । श्रकूरर्य = अंकुरित हो उठा । धर-धरती । नीसांन< फा०= (नगाड़े) | धुनि घनी धुन से अर्थात् बड़े ज़ोर से । धाइर= चारण (युद्ध वाले) । करपि कड़खा (युद्धोत्साह का गीत विशेष ) । रस कुर क्रूर रस अर्थात् वीर व रौद्र रस दृष्टि से तात्पर्य है) । रुद्र मनकिय रसमि< सं० रश्मि = किरण ( परन्तु यहाँ रौद्र शब्द करने लगे । काइर= कायर बनकि = खनखनान । संकर सांकल जंजीरें । रन सं० रण । नकि नगाड़े । मेरिज उठे । कन्ह – सोमेश्वर के छोटे भाई अर्थात् पृथ्वीराज के