पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३०४

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रू० ५५ - सेसनि = शेष, बेशुमार । संकहि-शंख | बहुत हि = बजते ही । कुहक=तुरही; मधुर स्वर; कुहक वाण । सुगंग <सुरंगसुंदर । मेटै सह = शब्द मिटाता है । निसांन के नगाड़ों के । स्रवन < सं० श्रवण = का। ति=उनके।

रू० ५६—अनी=सेना | दोउ=दोनों । घन घीर= घोर (अर्थात् काले ) बादल | बाइ=दौड़कर | कर करना (अर्थात् कर्तव्य ) । कर घाट कर्तव्य के घाट पर । चित्रंगी रावर - [ 'रावर' या 'रावल' <सं० राजकुल ] -को सन् -१२०१ में समरसी के भाई सूरजमल के पौत्र राहुप ने राना कर दिया [(Raj- asthan; Tod. Vol. I, pp. 260-61) ] | चित्रांगी रावर समरसिंह ( ११४ε- ११९२ ) - यह वीर गोरी के उस युद्ध में मारा गया जिसने भारतवर्ष में हिन्दू साम्राज्य का अंत कर दिया। रासो सम्यौ २१ में हम पढ़ते हैं कि पृथ्वीराज की बहिन पृथा इन्हें ब्याही थीं । चौहान इनसे बराबर सलाह लिया करते थे । [Rajasthan, Tod, Vol. I, pp. 254, 256-57 तथा पृ० रा० में]।

नोट रू० ५३ – “सुलतान ने पृथ्वीराज के दल के अगणित वैदीप्य- मान बाणों को देखा और शत्रु के इस प्रबल दल को देखकर उसे प्रतीत होने 1. लगा, कि मानों रात्रि का अंधकार चारो ओर से बिरता चला जाता है, आकाश बदल गया और उसमें फिर से तारे चमकने लगे हैं ।" इस दोहे में इस अर्थ के अनुसार बड़ी ही सुन्दर ध्वनि लक्षित हो जाती है अर्थात् अभी तक सुलतान 'विजयी होता हुआ ही चला श्राता था किन्तु इस दल को देखकर उसके छक्के 'छूटने से लगे । अपनी पराजय की शंका उसे रात्रि के अंधकार के आगमन की सूचना देने लगी । हक फेरि' जिसका अर्थ गरदिश के बदल जाने का है। और जिसका प्रयोग अनेक ध्वन्यार्थों में फारसी और उर्दू साहित्य में निरंतर किया जाता है, यहाँ उसी अर्थ में प्रयुक्त हुआ है—अर्थात् सुलतान को आशंका हो रही है कि उसके ग्रह अस्त हो रहे हैं और चमक के मिस मानों शत्रु के • सितारे चमक उठे हैं।

रू० ५४ - कवि केशवदास ने रामचंद्रिका में लिखा है कि रथों की पताकायें सूर्य के घोड़ों के पैरों में लगती हैं। चंद ने भी उसी ध्वनि का प्रयोग इस दोहे में किया है । यहाँ सूर्य के स्थान पर चंद्र लिखा गया है क्योंकि चंद बरदाई "निसि श्रागम" रू० १३ में लिख चुके थे । ध्वनि यह है कि सैनिकों की ध्वजायें 'चंद नरिंद' के पैरों में लगती हैं अर्थात् वे बहुत ऊँची हैं।

रू० ५३ और ५४ से 'रासो-सार' के लेखकों ने पृ० १०.१ पर यह सार निकाला है- "उधर यवन सेना में ऊँचे हाथियों पर बैठे हुए, योद्धाओं के