पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३०७

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( ६६ ) पहली जिल्द, पृ० १५३-५४] । “रावल समर सिंह के समय के आठ लेखों. से यह निश्चित है कि वि० सं० १३५८ ( ई० स० १३०१ ) अर्थात् पृथ्वीराज के मारे जाने से १०६ वर्ष पीछे तक वह ( रावल समर सिंह) जीवित था " [राजपूताना का इतिहास, गौ० ही ० श्रोझा, जिल्द ३, भाग १, पृ० ५१-५२ ] । समतसी तथा समरसी के नामों में थोड़ा सा ही अंतर है इसलिये संभव है कि पृथ्वीराज रासी के कर्ता ने समतसी को समरसी मान लिया हो। बागड़ का राज्य छूट जाने के पश्चात् सामंत सिंह कहाँ गया इसका पता नहीं चलता । यदि वह पृथ्वीराज का बहनोई माना जाय, तो बागड़ का राज्य छूट जाने पर संभव है कि वह अपने साले पृथ्वीराज के पास चला गया हो और शहाबुद्दीन गौरी के साथ की पृथ्वीराज की लड़ाई में लड़ता हुआ मारा गया हो" [ डँगरपुर राज्य का इतिहास, गौ० ही० ओ० पृष्ठ ५३ ] । अतएव रासो में आये हुए समरसिंह को सामंतसिंह ही मानना उचित होगा । मनमथ सं० मन्मथ / से कामदेव का एक नाम । त्त्री पुरुष संयोग की प्रेरणा करने वाला एक पौराणिक देवता जिसकी स्त्री रति, साथी बसंत, वाहन कोकिल, अस्त्र फूलों का धनुपबाण है । उसकी ध्वजा पर मछली का चिन्ह है। कहते हैं कि जब सती का स्वर्ग- वास हो गया तब शिव जी ने यह विचार कर कि अब विवाह न करेंगे समाधि लगाई ! इसी बीच तारकासुर ने घोर तप कर के यह वर माँगा कि मेरी मृत्यु शिव के पुत्र से हो और देवताओं को सताना प्रारम्भ किया। इस दुःख दुखित होकर देवताओं ने कामदेव से शिव को समाधि भंग करने के लिए कहा | उसने शिव जी की समाधि भंग करने के लिये अपने वाणों को चलाया । इस पर शिव जी ने कोपकर उसे भस्म कर डाला। उसकी स्त्री रति इस पर रोने और विलाप करने लगी। शिव जी ने प्रसन्न होकर कहा कि कामदेव से बिना शरीर के रहेगा और द्वारिका में कृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के घर उसका जन्म होगा । प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध कामदेव के अवतार कहे गये हैं। चंद बरदाई ने समरसिंह की कामदेव से उपमा दी है। जिससे अनुमान होता है कि चित्रांगी रावर वीर तो था ही बड़ा स्वरूपवान भी था । श्रनी सेना | मुष्य <मुख । अनी मुष्य = सेना के मुख पर अर्थात् सेना के आगे । पिष्यौ = देखा गया । सबल = बल सहित अर्थात् अपने सामंतगणों के साथ | = नोट --- "पावस के प्रबल दल बद्दल रूपी यवन सेना को देखते ही प्रचंड पवन रूपी मेवाड़ पति रावल समरसिंह जी ने उस पर इस वेग से स किया कि वे छिन्न भिन्न होने लगे ।" रासो-सार, पृष्ठ १०१ ।