पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(६८)

समर सिंह- "मेवाड़ एवं समस्त राजपूताने में यह प्रसिद्ध है कि अजमेर और दिल्ली के अंतिम हिंदू सम्राट् चौहान पृथ्वीराज (तीसरे) की बहिन पृथा बाई का विवाह मेवाड़ के रावल समर सी (समर सिंह ) हुआ, जो पृथ्वी- राज की सहायतार्थ शहाबुद्दीन गोरी के साथ की लड़ाई में मारा गया । यह प्रसिद्धि 'पृथ्वीराज रासों से हुई, जिसका उल्लेख 'राजप्रशस्ति महाकाव्य' में भी मिलता है ["तत: समर सिंहाख्यः पृथ्वीराजस्य भूपतेः। पृथाख्याया भगिन्यास्तु परिरित्यतिहार्दतः ॥२४॥ भाषा रासा पुस्तकेत्य युद्धस्योक्लोस्ति विस्तरः ॥२७॥ राजप्रशस्ति, सर्ग ३], परन्तु उक्त पृथ्वीराज की बहिन का विवाह रावल समरसी (समरसिंह ) के साथ होना किसी प्रकार संभव नहीं हो सकता; क्योंकि पृथ्वी- राज का देहांत वि० सं० १२४६ ( ई० स० १९६१-६२) में हो गया था, और रावल समरसी (समरसिंह) वि० सं० १३५८ ( ई० स० १३०२) माघ सुदी १० तक जीवित था (ना० प्र० प० भाग १, पृ० ४१३, और टिप्पण ५७, पृ० ४४६) जैसा कि आगे बतलाया जायगा। सांभर और अजमेर के चौहानों में पृथ्वीराज नामक तीन और बीसलदेव (वित्रहराज नामधारी चार राजा हुए हैं (हिन्दी टॉड राजस्थान, प्रू० ३६८-४०१), परन्तु भाटों की ख्यातों तथा पृथ्वी- राज रासो' में केवल एक पृथ्वीराज और एक ही बीसलदेव का नाम मिलता हैं, और एक ही नाम वाले इन भिन्न भिन्न राजाओं की जो कुछ घटनायें उन को ज्ञात हुईं, उन सबको उन्होंने उसी एक के नाम पर अंकित कर दिया । पृथ्वीराज (दूसरे ) के जिसका नाम पृथ्वीभट भी मिलता है, शिलालेख वि० सं० १२२४, १२२५ और १२२६ (३० स० ११३७, ११६८ और १९६६) के, और मेवाड़ के सामंतसिंह (समत्तसी) के वि० सं० १२२८ और १२३६ (३० स० ११७१ और १९७९ ) के मिले हैं; ऐसी दशा में उन दोनों का कुछ समय के लिये समकालीन होना सिद्ध है। मेवाड के ख्यातों में सामंत सिंह को समतसी trafe को समरसी लिखा है। समतसी और समरसी नाम परस्पर बहुत कुछ मिलते जुलते हैं, और समरसी नाम पृथ्वीराज रासा बनने के अनंतर अधिक प्रसिद्धि में जाने के कारण - इतिहास के अंधकार की दशा में - एक के स्थान पर दूसरे का व्यवहार हो जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है । श्रतएव यद पृथाबाई की ऊपर लिखी हुई कथा किसी वास्तविक घटना से संबंध रखती हो तो यही माना जा सकता है कि अजमेर के चौहान राजा पृथ्वीराज दूसरे ( पृथ्वीभट ) की बहिन पृथावाई का विवाह मेवाड़ के रावल समतसी ( सामंत सिंह ) से हुआ होगा। डँगरपुर की ख्यात में पृथाबाई का संबंध समतसी से बतलाया भी गया है।[उदयपुर राज्य का इतिहास, गौरीशंकर हीराचंद ओझा,