पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३०९

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( ७१ ) चढाई कर दी। युद्ध में बडी वीरता दिखाकर हुसेन खाँ वीर गति को प्राप्त हुआ । गोरी पकड लिया गया। चित्ररेखा हुसेन की कब में दफन हो गई । पाँच दिन का दवाना भुगत कर गोरी हुसेन वॉ के पुत्र ग्राजी को लेकर और कमो युद्ध न करने का वचन देकर राज़नी लौट गया, गाजी ( या हुसेन ग्लॉ) को गोरी ने राजनी जाकर कैद में डलवा दिया। एक महीने पाँच दिन बाद हुसेन ग्यॉ क़ैदखाने से भाग निकला और पृथ्वीराज के पास या गया [मास एक दिन पंच रहि बद्धि धाइ हुसैन, परा लग्यौ चौहान के राज प्रसन्निय वैन || " समय १०, छं० २] । मीरहुसेन 'तत्रकाते नासिरी' में वर्णित नासिरुद्दीन हुसेन है जिसे फारसी इतिहासकारो ने छिपाने का बडा प्रयत्न किया है [Tabaqat-1- Nasiri. Raverty. pp. 322-23, 332] | धक्काई धकार = धक्का मुक्की करते हुए । दोउ हरबल बल मज्मे = दोनो हरावल सेना के बीच मे, [ दोनो हलचल मचाती हुई सेना के बीच से' ह्योर्नले ] । पच्छ सेन= सेना के पीछे । आहु=ि दौडकर, ग्राकर; ('याहुद्दि' एक योद्धा भी है)। अनी बंधी सेना को बॉवा । श्रालुज्फे = उलझ गये । वियदो । सुलतान दल दह= सुलतान की सेना को कष्ट देते हुए | बर=भलीभाँति, अच्छी तरह । बीर वर= श्रेष्ठ वीर । धार धार तलवारे । धारह धनी = धार देश का अविपति (जैतसिंह प्रमार ) | बर भट्टी = श्रेष्ठ भीमराव भट्टी । उप्पारि करि= उखाड फेका । कवित्त छत्र मुजीक सु अपि जैत दीनो सिर छ । चन्द्रव्यूह अङ्करिय राजु, हुअ तहाँ इकत्रं ॥ एक हुस्सैन', वीय अह पुण्डीरं । मद्धि भाग रघुवंस, राम उपभोः बर बीरं ॥ सांपला सूर सारंग दे, उररि वान गोरीय मुष । हथ नारि जोर जंबूर घन, दुहॅू बॉह उपभेति रुष ॥ ६०७११ रु०५६ कवित्त छट्टि अ बरघटिय, चढ्यौ मध्यांन भांन सिर । सूर कंध बर कट्टि मिले काइर " कुरंग बर ॥ at e er r लोह सो, लोह जुरुक्के । मन र मिले, चित्त में कंक परके ॥ (१) ना०---- -हुसैन (२) ना० (३) ना० गोर; ए० कृ० को जो, जोरो (४) ना०-ति (२) ना० रष कु०स (६) मा०---- कहि (७) हा० । उभौ