पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३१०

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( ७२ ) पुंडीर मीर मंजर भिरन, लरन तिरच्छो लग्गयो । व बघू जे संका सुबर, उदौ जानि जिमि भग्गयौ ॥ इं० ७२ १८०६० । भावार्थ-- ई --- रू०५६ - हृढ़ (= मुख्य ) छत्र अपने सर पर धारण कर जैत सेनापति बना और उसने सेना को चन्द्रव्यूह में खड़ा किया । वहाँ सब राजे महाराजे एकत्रित हुए । एक सिरे पर हुसेन ख़ाँ था और दूसरे सिरे पर पुंडीर था और बीच में वीर योद्धा रघुवंशी राम था । साँखल का योद्धा और सारंग दे गोरी के संमुख पड़े ( या गोरी के ख़ानों पर सामने से आक्रमण करने के लिये प्रस्तुत थे) । वे दोनों (चामंड और हुसेन ख़ाँ ) दोनों सिरों पर बहुत सी छोटी और बड़ी तोपें लिये हुए क्रोधित खड़े थे । रू० ६०-- छठी घड़ी आधी बीती थी कि मध्याह्न का सूर्य सर पर श्रा गया । शूरों ने कायरों के कंधे सर से काट दिये जब वे हरिणों के समान उन के आगे पड़ गये । पूरी आधी घड़ी तक तलवार से तलवार बजती रही । ( शूरवीरों की) अभिलाषा थी कि सामने शत्रु मिले और उनका ध्यान तल- बारों की मूठों पर था । युद्ध में शत्रु के दल का नाश करने वाले पुंडीर ने जब एक पक्ष से बार किया तो गोरी की सेना इस प्रकार भाग खड़ी हुई जिस प्रकार नव वधू सूर्योदय देखकर अपने पति के पास से लज्जावश भाग जाती है । शब्दार्थ --- रू० ५६ -- मुजीक मुख्य से तात्पर्य है); ह्योर्नले ने< (मुज्जक्क्का ) == हृढ़; यहाँ (मुज़ायका ) से जो उत्पत्ति की है वह यहाँ ठीक नहीं है । सुबह । अप्पि अपना; अर्पित । दीनों सिर सिरपर छत्र लगाया अर्थात् सेनापति बना | अङ्कुरिय= अङ्कुरित हुआ। राजु = राजा गण । हु तहाँ इकत्रं = वहाँ एकत्रित हुए । एक अत्र - एक सिरे पर । वीय ग्रह दूसरे सिरे पर। पुंडीर बंद पुंडीर । मधि मध्य | उपभो (या उभ्भो) ==उपस्थित | सांघलो सूर साँखलका योद्धा; साँखलौ --- राजपूतों की एक जाति भी कही जाती है जिसका ठीक पता नहीं चलता । दॉड ने ( Rajasthan. Vol. I, p. 93 में ) और उनके अनुकरण पर शेरिंग ने (Hindu Tribes and Castes Vol, I, p. 146 में ) इन्हें प्रभार जाति की ३५ शाखाओं में से एक तथा मारवाड़ निवासी और पूगल का अधिपति बताया है। दूसरी ओर ( Asiatic Journal, Vol. XXV, pp. 106 में ) टॉड का कथन है कि साँखला, परिहार जाति की एक प्रशाखा है और शेरिंग ने (वही, पृ० १५१ में ) झाँसी जिले के परिहारों के पूर्वजों में एक 'सारंग दे' का नाम लिया है । सारंग दे यह वीर Hindu Tribes and Castes. p. 151 और