पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३२६

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( 55 ) शब्दार्थ- 1- रू० ६७ -- परि गिर पड़ा अर्थात् मारा गया । पतंग जैसिंव = पतंग जयसिंह नामक पृथ्वीराज का वीर सामंत था । पतंग का एक अर्थ सूर्य भी होता है जिससे अनुमान होता है कि जयसिंह सूर्यवंशी राजपूत था | पतंग = पतिंगा । अणुन तन=अपना शरीर । दज्भे < दहू = जलाना । नव = नया | पतंग = सूर्य । गति लीन = गति में लीन होकर । (नोट- भारतीय शूरवीरों का यह विश्वास था कि वीर गति पाकर योद्धा सूर्य लोक जाते हैं और सूर्य लोक की प्राप्ति बड़े ही पुरुष व तपस्या द्वारा होती मानी गई है। "वेवे जात मंडल अखंड अरकन के ।" गंगा-गौरव, जगन्नाथदास रत्नाकर ) 1 ठाम < थान < स्थान | तेल टांम= तेल का स्थान अर्थात् दीपक । वाति = बत्ती । श्ररानि < सं० श्रग्नि; ग्रगनि= जुगुनू । 'तेल ठांम बाति ग्रगनि सकल विरुज्भाइव'= जुगुनू जलता हुआ दीपक अकेले बुझा देता है । [ नोट-जुगुनू का दीपक बुझाना अशुभ सूचक माना गया है ]। एकल = केले । श्रप < अप्प अपना | विरुज्भाइय= बुझा देना । रनि रण । कूंचारी=कुमारी कन्या | 'पंच लगाइय' का 'पंथ लगाइय' पाठ भी मिलता है, जिसका अर्थ मार्ग पर लगा दिया अर्थात् 'मार डाला' होगा । बर= श्रेष्ठ | बरौ वरण किया । दैइ == देकर । दाहन == (संज्ञा) जलाने का (समिधा या याहुति से तात्पर्य है ) । दुज्जन < दुर्जनशत्रु | दवन < दव = दावाग्नि ! जीतेवजीत लिया । ताहि = उसकी | पुज्जै = बरावरी । कवन = हि० कौन <प्रा० कवन, कवण, कोउण <० कः पुनः । नोट- इस रू० का ह्येोर्नले महोदय द्वारा किया हुआ अर्थ जान लेना भी उचित होगा--- "Patang Jaysingh fell; he burns his body like a moth (into a flame ); a new existence he obtained in the sun having torn many enemies in shreds. (Just as that (moth) by itself puts out the flame of the wick of on oil lamp (by falling into it ) ; so (he), while being killed himself, also killed the enemy, folling five of them to the ground. War he wedded as a virgin, scorning fate and destroying enemies, he defeated the demons on earth. Who else can equal that. pp. 42.48. कवित्त रूपौ बीर पुंडीर, फिरी पारस सुरतांनी । सत्र बीर चमकत, तेज आरुहि सिर ठांनी ॥ (१) ना०-- शस्त्र (२) ए० - तानी ।