पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३३०

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(ER) फिरि रुक्यौ प्रथिराज | सबर पारस पहु पंगिय । च्यारि च्यारि तरवारि । बीर कूरंभति सजिय || यि पहुप इक चंदने । एक कित्ति जंपत बयन हथ्थ दरिद्री द्रव्य ज्यौं । रहे सूर निरषत नयन || छ०१४६३ | सं०६१। सम्हो = सामने | उपभारिय= उभारी उठाई। बर करिय= बरकना, बिखरना दुहि = टूटना । तुट्टि=टूटना, कटना । सीस <सं० शीश = सर । टोप = शिरस्त्राण [दे० Plate No. I, राजपूत योद्धाओं के शिरस्त्राण लगे हैं ] ! कर्मध < कबंध = धड़ । तार < ताल | नंचि= नाचता रहा । रुद्र = एक प्रकार के गरण | शिव का एक नाम ; ( वि० वि० प० में देखिये ) । रुद्रह हस्यो भया- नक रूप से हँसने लगे (अर्थात् भयंकर अट्टहास करने लगे) । नंदी - [ <सं० नंदिन] - (१) शिव के एक प्रकार के गण । ये तीन प्रकार के होते हैं— कनक- नंदी, गिरिनंदी और शिवनंदी । (२) यह शिव के द्वारपाल बैल का नाम भी हैं जिसे नंदिकेश्वर कहते हैं । प्रस्तुत कवित्त में शिव के गण से ही तात्पर्य समझ पड़ता है । सयल पुत्री < शैल पुत्री पार्वती; ये हिमालय की कन्या प्रसिद्ध हैं। पिष्पि <सं० प्रेक्ष्य देखकर । वीर = बोरों का । भारथ (अप० ) [ < प्रा० भारह सं० भारत = युद्ध, संग्राम ] = महाभारत । ( उ० - भारथ होय जूझ जो श्रधा । होहिं सहाय श्राय सब जोधा ।' जायसी) । नयो नया - करते उसे रू० ७० --- सोलंकी सारंग = इस वीर के विषय में कुछ विद्वानों का मत है कि यहीं मारा गया और वे प्रस्तुत कवित्त की अंतिम पंक्ति का अर्थ एक सब के सामने खेत रहा और एक गरजने की धुन बाँधे रहा" हैं; परन्तु इस वीर की मृत्यु यहाँ नहीं हुई है । अगले रासो-सम्यौ में हम पाते हैं। संयोगिता अपहरण वाले युद्ध में वह पृथ्वीराज की ओर से बड़ी वीरता पूर्वक लड़कर मारा गया था-- "ब्रह्म चालुक ब्रह्म चार । ब्रह्म विद्या वर रष्चिय ॥ केस डाभ अरि करिय । रुधिर पन पत्र विसिप्रिय ॥ are गहिंग अंजुलिय | नाग गहि नासिक तामें ॥ धन सिर फेरि र दुहुँ श्रवन | जाप जापं सुत्र राम || सम्हों परयौ । दुअन तार मन उल्हसिया || मी जुद्धथमि । सुर पुर जा सारंग वसिय ॥ " छं० १५२४, सं० ६१ । नौ भृत-नया भृत्य (नौकर) [नौकरसे सामंत अथवा सैनिक का तात्पर्य है < = घोड़ा। उत्तर = है]। विलग्या <हि० विलग = पार्थक्य, अलग