(२) विभिन्न लोकों के वर्णन 'विष्णु पुराण' (२/७/३-२०) में पढ़ने को मिलेंगे, परन्तु विभिन्न पुराणों में भिन्न भिन्न कथायें मिलती हैं और चंद वरदाई का मत भी अपना निराला है।
(३) अगले रू॰ ७५ से भी यह बात स्पष्ट हो जाती है कि सुलख नहीं मारा गया है वरन् उसका पिता मारा गया है—
"तिहित वाल ततकाल सतष बंधव ढिग आइय" अर्थात् एक वाला तत्काल सुलष के बाँधव के पास आई। आश्चर्य तो यह है कि ह्योर्नले महोदय ने भी इसका यही अर्थ लिखा है परन्तु रू॰ ७४ के अर्थ में सुलख की मृत्यु लिख गये हैं। जहाँ तक मेरा अनुमान है उन्हें सुलख और सलख तथा लखन प्रसार और लखन बघेल के समझने में भ्रम हो गया है।
कवित्त
तन झंझरि पंवार पर्यौ घर मुच्छि घटिय[१] बिय।
वर अच्छर बिटयौ, सुरग मुक्के न सुर गहिय[२]॥
तिहित बाल ततकाल[३], सलप बंधव ढिग आइय।
लिषिय अंग बिह्य[४] हथ्थ, सोई वर बंचि दिषाइय॥
जंमन मरंन[५] सह दुह सुगति, नन मिट्टै भिंटह न तुअ।
ए बार सुवर बंटहु नहीं, बंधि लेहु सुक्की बघुअ॥ छं॰ ११०। रू॰ ७५ ।
दूहा
रांमबंध कौ सीसवर, ईस गह्यौ कर चाइ।
अथ्थि[६] दरिद्री ज्यौं भयो, देपि देपि ललचाइ ॥ छं॰ १११। रू॰ ७६।
दूहा
जाम एक दिन चढ़त वर, जंघारौ झुकि बीर।
वीर प्रेम तत्तौ पर्यौ, धर अष्णारे मीर॥ छं॰ ११२। रू॰ ७७।
भावार्थ—रू॰ ७५—पामार का शरीर झँझरी हो गया और वह पृथ्वी पर गिर पड़ा तथा दो घड़ी तक मूर्छित पड़ा रहा। अप्सरायें (स्वर्ग में रहते रहते और देवताओं का वरण करते करते) कब उठीं अतएव उन्होंने स्वर्ग का बास और देव वरण छोड़ दिया (और नीचे मृत्युलोक में युद्धस्थल पर