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आई। एक बाला तुरंत सुलख के बांधव (पिता लखन प्रमार) के पास आई और उसके ललाट पर लिखा हुआ विधि का विधान पढ़ कर सुनाया। (फिर बोली कि) जन्म और मरण साथ ही साथ हैं; (परन्तु) वीरों के लिये ये दोनों सुगतियाँ हैं: ये अवश्यंभावी हैं (मिटने वाली नहीं हैं), तुम अपनी मृत्यु पर निराश न हो। [जान पड़ता है कि सुलख के बाँधव ने पहले उसके प्रस्ताव का विरोध किया था क्योंकि वह कहती है कि] हे प्रिय, इस बार मेरे प्रस्ताव का विरोध न करो और मेरे समान सुख देने वाली (या सुन्दरी) बधू को स्वीकार ही कर लो।

रू॰ ७६—ईश (शिव) ने राम के संबंधी का श्रेष्ठ सर [अपनी मुंड-माला में डालने के लिये] बड़े चाव से उसी प्रकार लेना चाहा जिस प्रकार दरिद्री मनुष्य धन देखकर ललचाता है (और उसे लेना चाहता है)।

रू॰ ७७—एक याम (=पहर) दिन चढ़ने पर वीर जंधारा युद्ध में झुका या कूदा (परन्तु) मीर से युद्ध करके वह जलते हुए बारा सदृश पृथ्वी पर गिर पड़ा।

शब्दार्थ—रू॰ ७५—पांबार=प्रमार। पर्यौ धर=पृथ्वी पर गिर पड़ा। मुच्छि=मूर्च्छित। घटिय=घड़ी; (यह चौबिस मिनट का समय माना गया है)। विय=दो। विटयौ<(मराठी) विटनेम=ऊवना। सुरंग मुक्के=स्वर्ग [धि॰ वि॰ प॰] छोड़ दिया। सुर गहिय=देव वरण। तिहित=तहाँ; उन्हीं में से। बाल=बाला। ततकाल<तत्काल। बंधव<बांधव=बंधु, भाई, नातेदार। सलष बंधव=लखन का बांधव (पिता) लखन प्रमार। ढिग आइस=निकट आई। अंग=शरीर (यहाँ ललाट से तात्पर्य है क्योंकि ब्रह्मा की रेखायें वहीं पर लिखी हुई मानी गई हैं)। बिह्य<विधि=ब्रह्मा। हृथ्थ=हाथ। वर=श्रेष्ठ। वंचि दिपाइय=बाँच कर दिखाया। जंमन=जन्म। सह=साथ। दुह=दोनों। सुगति=सुन्दर गतियाँ। नन मिट्टै=न मिटने वाली अर्थात् अवश्यंभावी। मिंटह न तुअ=तुम निराश न हो। एवार=इस बार। सुबर=सुन्दर वर (अर्थात् प्रियतम)। वंदहु<(मराठी) बाटणेम=झगड़ना। बंटहु नहीं=झगड़ा न करो। बंधि लेहु=बाँध लो या स्वीकार कर लो। सुक्की वधुअ=सुख देनेवाली बधू।

रू॰ ७६—राम बंध=राम का बंधु—(यह रघुवंशियों की जाति का राम है जिसका विवरण पीछे दिया जा चुका है। उसके बंधु (संबंधी) का नाम प्रिथा या प्रथा था। अगले रू॰ ८४ में वर्णित मरे हुए योद्धाओं में वह तीसरा