पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३४७

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राय ने आवागमन से मुक्त होने की बात पर दृढ़ निश्चय करके और मृत्यु की परवाह न कर ) ( शत्रु के ) वक्षस्थल [ का निशाना ] ताक कर तलवार ऊपर उठाई।

शब्दार्थ--रू० ८१.-उपस =उपमा । कथ्थ ( प्रा० )<सं० कथ्=कहना । नैंन = नेंत्र । बांन=वाण । अंकुरि=घुसना । बहुरि=फिर । तुई-= टूटना, कटना । बहि=बहना (ह्योर्नले); वायाँ । बहि हथ्थ = बायाँ हाथ । फेरि बर वीर सवीरह=फिर भी श्रेष्ठ वीर सबीरह (अर्थात् वीरता पूर्ण रहा); फिर भी उल श्रेष्ठ वीर का वीरोचित उत्साह कम नहीं हुआ । मरन चित्त सिंचयौ=उसने अपने मन में मरने की बात सिंचयो (सोची) । जनम तिन तजी जंजीरह=उसने जन्म [ अर्थात् वीरता पृथ्वी पर पुन: जन्म लेने ] की बेड़ी त्याग दी । (साधारणत: मृत्यु होने पर आवागमन लगा रहता है परन्तु युद्धभूमि में वीरगति प्राप्त होने पर मुक्किं हो जाती है और अवागमन की बंधन छुट जाता है-- ऐसा तत्कालीन क्षत्रिय योद्धाओं का विश्वास था)। हथ्थ (प्रा०)<सं० हस्त=हाथ । बथ्थ(प्रा०)<सं० वसि्त= कमर । आहित<सं० आहत । बथ्थ हित= उसका हाथ और कमर (या वक्षस्थल) घायल हो चुके थे; (फिर उसने अपना हाथ कमर पर रक्खा–होनले)। फिर तक्के=फिर (निशाना) ताककर । उर=हृदय या छाती । बहु बेगा=बड़े वेग से। फिर तक्के उर बहु वेगा= फिर बड़े वेग से ( शत्रु के ) बक्षस्थल ( का निशाना ) ताककर । वीर उचाइसु तेग = बीर ने तलवार उठाई। फिर तक्के उर बहु बेगा--कुछ विद्वान् ‘उर' का 'ओर' शाब्दिक अर्थ लेकर इस पंक्ति का अर्थ करते हैं कि—फिर बड़े वेग से उस ओर ताककर।

टिप्पणी--(१)"The interpretation of this whole stanza is very obscure". Hoermle, परन्तु ऐसी कोई कठिनाई इसके शब्दार्थ और भावार्थ में नहीं प्रतीत होती है।

(२) डॉ० ह्मोर्नले महोदय का अनुमान है कि लंगरी राय की इस युद्ध में नृत्यु हो गई परन्तु यह भ्रम पूर्ण है। लंगरी-राय संयोगिता अपहरण वाले युद्ध में था और बड़ी वीरता पूर्वक लड़कर ( रासो सम्यौ ६१, छं० ६७३-१००४ ) मारा गया, (संजमह सुअन लैं चली रंभ । सब लोग मद्धि हूँऔ अचंभ ।' छं० १००४) । किस प्रकार यह उद्भभट वीर पंगदल को परास्त कर राजमहल में घुस पड़ा और किस प्रकार उसका आधा धड़ लड़ता रहा, यह वहीं पढ़ने से विदित होगा। चंद वरदाई ने उसी स्थल पर लंगरी राय की प्रशंसा में निम्न तीन वित्त कहे हैं...