पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३६०

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हुंकार कर (शत्रुओं को) संग्राम से मोड़ दिया या भगा दिया। जिर्ने कढि्ढयं बैरगो दंत गोरी = जिसने वैराग्य (=योग चल) द्वारा गोरी का दाँत तोड़ दिया। दाहिनौ--यह वही दाहिम है जिसकी मृत्यु का वर्णन रू० ७२ में हो चुका है। दाहिम होने के कारण यह प्रसिद्ध दाहिम बंधु कैमास, चामंड और चंद पुंडीर का संबंधी रहा होगा। यह नरसिंह देव का अंसी। (<अंशी= साझी-दार ) भी था। नरसिंह का विस्तृत वर्णन पीछे किया जा चुका है। गिल्यौ= खा डाला, निगल लिया ( अर्थात् मार डाला ) । गंसी > हि० गाँसी =बाण के समान नोकदार, पैना। जिनें साहि गोरी गिल्यौं पान गंसी-- जिसने शाह गोरी. के ख़ानों को गंसी से मार डाला। वीर ( बानेत नादंत नादं ) = यह वीर जो. बांनत कहा गया है और कोई नहीं लोहाना है जिसकी मृत्यु का वर्णन रू०८२ में है। उक्त रू० में लिखा है कि लोहाना महमूद के साथ भारी बाण चलाता हुआ भिड़ा | महमूद= शहाबुद्दीन ग़ोरी के भाई गियासुद्दीन का पुत्र था और वह इस युद्ध में नहीं मारा गया था अतएव हम सब रासो प्रतियों और ना० प्र० सं० रासो के गिल्यौ ( = मार डाला ) पाठ को 'मिल्यौ' किये देते हैं । ( मिल्यौ= मिला या सामना किया। यह भी संभव है कि मिल्यौ के स्थान पर लिखने वाले भ्रमवश गिल्यौ लिख गये हो क्योंकि 'ग' और 'ख' में केवल एक 'पड़ी पाई' का भेद मात्र है)। नादंत नादं= नाद करता हुआ; हुंकारता हुआ। जावलौ जल्ह=इस नाम के योद्धा का युद्ध वर्णन पिछले रूपकों में नहीं किया गया है। संभव है कि यह लंगरी राम हो,' ह्योर्नले । परन्तु लंगरी राय का वर्णन फिर अगले सम्यौं ३१, छं० १४४ में है--( लग्यो लंगरी लोह लंगा प्रमानं । षगे षते पंड्यौ दुरासान पानं ) और उसकी मृत्यु का वर्णन सम्बौ ६१ में जैसा कि पीछे टिप्पणी रू० ८१ में प्रमाणित किया जा चुका है, पाया जाता है। 'जब तिलंग परलोक गय। दय दक्षिण जावलम।' (सम्यौ ६१ ) अर्थात् जब प्रमार राजा तिलंग परलोक गया तो उसने दक्षिण देश जावल को दिया। इससे स्पष्ट है कि जावल दक्षिणी राजपूतों में थे। लंगरी भी दक्षिणी राजपूत था इसीलिये ह्योर्नले महोदय ने जावल को लंगरी मानने की संभावना की है। एक जावत जल्ह का वर्णन संयोगिता अपहरण वाले युद्ध में भी आया है–- (सज्यौ जीवलो जल्ह चालुवय भारी ।” सम्यौ ६१ छं० १२२ ]। इस युद्ध में मल्ह की मृत्यु भी हुई थी [ 'परयौ जावलौ जल्ह सामंत भारे | जिनैं पारिया पंगपंधार सारे ॥' सम्यौ ६१, छं० १९२८]। भष्यं< सं० सक्ष्य = खाना। हुए सार मुष्ष= घोड़ों के सार ( शक्ति ) का मुख ( प्रधान ) अर्थात् घुड़सवारों का सरदार । निसंकंत< (सं०) नि:शंक=