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पर्यौ रूक रिन बट्ट अरि सेन गाही[१]
मनो एक तेगं झरी नीर दाही॥
फिरे अड्ड बड्ढे उपन्मा न बट्ढै।
विश्वंक्रम्म बंसी कि दारुन्न गट्ढै[२]॥ छं॰ १३८।
परे हिंदु मेच्छं उलथ्ये पलथ्थी।
करै रंभ भैर ततथ्थे ततथ्थी॥
गहैं अंत गिद्धं वरं जे कराली।
मानों नाल[३] कढ्ढें कि सोभै म्रनाली॥ छं॰ १३९।
तुटै एक टंगा टिकै[४] षग्ग धायौ।
मनो बिक्रमं राइ गोइंद पायौ॥
गहै हिंदु हथ्थं मलेच्छं भ्रमायौ।
जनौ भीम हथ्थीन उप्पम्म पायौ॥ छं॰ १४०।
ननं मानवं जुद्ध दानब्ब ऐसौ।
ननं इंद तारक्क भारथ्थ कैसौ॥
भुकं[५] बज्जि झंकारचं झंपि उट्ठै।
बरं लोह पंचं बधं पंचं छुट्टै[६]॥छं॰ १४१।
मनो सिंघ उज्झै अरुज्झन्त छुट्टै।
रनं देवसांई सए आब षुट्टै॥
घतं घोर दुण्ढंत उतकंठ फेरी[७]
लगै झग्गरै हंस हज्जार एरी॥छं॰ १४१।
तुटै रुंड मुंडं बरं जे[८] करेरी।
बरद्दाइ रिज्झैं दुहूं दीन्न भेरी॥छं॰ १४३। रू॰ ८९।

भावार्थ—रू॰ ८९—शत्रु सेना का संहार करता हुआ वीर रघुवंशी

(भीम) मारा गया। वह अभी बिलकुल बालक था और उसके मुँहपर डाढ़ी लज्जित हो रही थी (अर्थात् डाढ़ी के कुछ कुछ चिह्न दिखाई पड़ते थे)। शची ने लज्जा का परित्याग कर उसे ढूँढना प्रारंभ किया और अंत में उसे (एक स्थान पर) देखकर उसी प्रकार खींचा जैसे मछली अपने बच्चे को खींचती है। उस (भीम) ने (बढ़ती हुई) शत्रु सेना पर आघात कर उसका युद्ध


  1. ना॰—माही
  2. ना॰—गढ्ढै
  3. ए॰ को॰—भाल
  4. ना॰—तुटै एकटं गाढ़ि कै षग्ग धायौ
  5. ना॰ झकं
  6. ना॰—मनों सिंघ उझ्झै अरुझ्झंत छुट्टै
  7. ना॰—घर्म घोर ढुंढं उतक्कंठ फेरी
  8. ना॰—जो।