पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३७२

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मार्ग उसी प्रकार रोका था मानो किसी ने (बढ़ती हुई) जल धारा सुखा दी हो। वीरों को इधर उधर दौड़ते देखकर (इसके अतिरिक्त और) कोई उपमा नहीं समझ पड़ती मानो विश्वकर्मा के वंशज लकड़ी गढ़ रहे हों। [युद्ध मार काट करके] हिंदू और म्लेच्छ उलटे पुलटे पड़े थे तथा रंभा और भैरव ताताथेई ताताथेई करके नाच रहे थे। कराल गिद्धों ने (मरे हुओं की) अंत- ड़ियाँ खींच लीं तो ऐसी शोभा मालूम हुई मानो नाल सहित कमल उखाड़ जिये गये हों। टाँग टूटने पर तलवार का सहारा लेकर (वीर योद्धा) दौड़े मानो उन्होंने गोविन्द का पुरुषार्थ या लिया हो। हिंदुओं ने म्लेच्छों को हाथ पकड़ चारों ओर घुमा कर भीम द्वारा हाथियों को घुमाने की उपमा प्राप्त कर ली। यह मानवों का युद्ध न था वरन् दानवों का सा युद्ध था या इन्द्र और तारकासुर के युद्ध सदृश था । युद्ध में आयुध परस्पर लगकर भंकृत होते थे, बंद हो जाते थे और (वार पड़ने पर) पुन: झनकार उठते थे। उन (सामंतों) के पाँच प्रकार के आयुधों की मार से (शत्रु के) पंचतत्व हो जाते थे (अर्थात् शत्रु की मृत्यु हो जाती थी)। जिस तरह सिंह छलांग मारकर और कूद कर (शिकार पर) टूटता है उसी प्रकार देवताओं के स्वामी युद्ध भूमि में आकर लड़ने लगे। घनघोर युद्ध में उत्कंठा से फिर कर ढूंढ़ते हुए शिव और इंद्र भगड़ने लगते थे। करौली के वार से जब धड़ से कटकर सिर गिरता था तब दोनों वरदाई (वीर; वरदानी) रीझ करके भेरी बजाने लगते थे ।

शब्दार्थ---रु.० ८६---रघुबंसी = यह भीम के लिये आया है जिसके लिये पिछले कवित्त में लिखा है कि उसने एक चतुरंगिणी सजा कर सुलतान की बाढ़ का मुक्काबिला किया। अरी से शत्रु सेना। जाडी (पंजाबी) = मारना। हुतौ= था। बाल बेसं <वाल वयस=नव युवक। मुष्षै लज डाढ़ी = मुख पर डाढ़ी लजित हो रही थी अर्थात् मुँह पर थोड़ी सी डाढ़ी निकली थी। बिना लज = बिना लज्जा के अर्थात् निर्लज होके।पष्षै <सं० प्र + कृश= पकड़ना; [प्रकृश से ‘पषै’ उसी प्रकार हो गया है जिस प्रकार सं० प्रकर्कश्य > प्रा० पअकवख (या) पकुबस]। सच <० चिद्राणी। ढुंँढ-ढूँढ़ कर। पिष्यों (=पेखा या देखा) <सं० प्रेक्षण। डिम्मरू= बचा। ऋष्यौ= खींचा। (नोट-मछली अपने ही बच्चों को खा जाती है। 'मीन ऋष्यौ' से यह ध्वनि भी घोषित होती है) रूक रोककर। रिन <सं० रण। बटा < बाट मार्ग ।गाही <सं० ग्रह =पकड़, घात। तेगं भरी= तलवार का बार। नीर दाही= जल सुखा दिया। अड्ड बंड्डे<अंड बंड =इधर उधर। उपम्मा न बंट्ढै--उपमा