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करके सामंतों को घेरने लगा सामंत भी भिड़ गये और भयानक युद्ध करने लगे (रू॰ ८६)। खुरासानी तातार ख़ाँ ने अपनी तसबीह तोड़ डाली। ग़ोरी के हाथी चौहान की सेना में घुस गये और दो सौ तेरह प्राणी दबकर मरे, (चौहान की) पराजय के लक्षण दिखाई दिये तब श्रेष्ठ वीर भीम, सेना के एक भाग को चतुरंगिणी बनाकर हाथी पर चढ़कर मोर्चे पर आया (रू॰ ८८)।शत्रु सेना का संहार करता हुआ रघुवंशी राम मारा गया। हिन्दू और म्लेच्छ उलटे पलटे पड़े थे, रंभा और भैरव ताताथेई ताताथेई करके नाचते थे, गिद्ध मृतकों की अँतड़ियाँ खींचते थे, वीर पैर कटने पर तलवार के सहारे दौड़ते थे–बिलकुल देवासुर संग्राम सरीखा युद्ध हो रहा था (रू॰ ८९)। (चौथे दिन संग्राम होने से पूर्व) रंभाने मेनका से पूछा कि आज तुम्हारा चित्त क्यों भारी है? मेनका ने कहा कि आज पहुनाई करने का दिन याया है। शूरवीर वीरगति पाकर विमानों में बैठ स्वर्गलोक जा रहे हैं। युद्ध भूमि में मैंने बहुत खोजा परन्तु मुझे अपना वर ढूँढे नहीं मिल रहा है और यही मेरी चिन्ता का कारण है। रंभा ने उत्तर दिया कि ऐ मेनका वहाँ उस वीर को मत खोजो वह तो विमान में बैठ शिव और ब्रह्म लोक छोड़ता हुया सूर्य लोक गया है। इंद्र-वधू उसकी पूजा करने गई हैं। उसके समान आजतक न तो कोई बीर हुआ है और न होगा (रू॰ ९०–९१)। (युद्ध प्रारंभ हुआ और हुसेन ख़ाँ के पीछे घोड़सवार सेना चल पड़ी। तातार मारूफ ख़ाँ और अन्य ख़ान एक साथ दौड़ने लगे तथा ग़ोरी शत्रुओं (सामंतों) के संमुख झूमने लगा। उसने हाथ में लरवात लेकर और मुट्ठी घुमाते हुए प्रण किया कि आज पलटने तक यदि शत्रु को पराजित कर दूँगा तभी शाह कहलाऊँगा (रू॰ ९२)। (इसके बाद) ग़ोरी ने सात बाण धनुष पर चढ़ाये। पहले बाण से उसने रघुवंश गुराई को हना (मारा) दूसरे ले उसने ताककर भीम भट्टी का भंजन किया और तीसरे से चौहान को घायल कर दिया। चौहान ने भी कमान सँभाल कर तीन बाण हाँथ में लिये परन्तु जब वे यह कर रहे थे तब तक गुज्जर में ग़ोरी को पकड़ लिया (रू॰ ९३)। हुसेन ख़ाँ नष्ट कर डाला गया और ग़ोरी तथा निसुरति ख़ाँ भोली बनाकर डाल दिये गये। युद्धभूमि में चौहान की जय जयकार होने लगी। सुलतान ग़ोरी हाथी पर बाँधकर दिल्ली ले जाया गया (रू॰ ९४)। इस समय चौहान का प्रताप मध्यान्ह सूर्य सदृश था (रू॰ ९५)। एक मास और तीन दिन संकट (कारागार) में रहने के उपरांत जब शाह के अमीरों ने प्रार्थना की और दंडस्वरूप नौ हज़ार घोड़े, सात सौ ऐराकी घोड़े, आठ सफेद हाथी, बीस ढली हुई ढालें, गजमुत्का और अनेक