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घोष हो उठा (रू॰ ६८)। खुरासान ख़ाँ ने पल्हन के संबंधों कूरंभ का सामना किया और अपनी लंबी तलवार से उसका सर काट दिया, फिर कूरंभ के कटे हुए सर से जब तक मारो मारो की ध्वनि होती रही तब तक उसका कबंध नाचता रहा। यह दृश्य देखकर भैरव अट्टहास कर उठे और पार्वती चकित रह गई (रू॰ ६९)। त-तार ख़ाँ ने हाथी को सूँड़ उखाड़ने वाले आहुट्ठ को स्वर्ग भेजा (रू॰ ७१)। नरसिंह का संबंधी शत्रु को मारकर उसकी कटार से घायल हो अपनी तलवार से सहारा लेने में चूक कर आहत होकर गिर पड़ा उसको गिरते देख दाहर-तनौचामंडा (चामंडराय) भयंकर युद्ध करने लगा (रू॰ ७२)। (अब तक) रात्रि हो चुकी थी (अस्तु) दोनों सेनाओं ने युद्ध बंद कर दिया। दूसरे दिन प्रातःकाल होते ही चौहान विशाल शाल वृक्ष सदृश उठा (रू॰ ७३)। युद्ध प्रारंभ हुआ और सुलख का पिता लखन मारा गया। महामाया उसको ले गई। इस वीर ने सूर्यलोक में स्थान पाया (रू॰ ७४)। अप्सरायें देव वरण छोड़कर भू लोक में युद्ध भूमि पर आईं और मरे हुए वीरों का वरण करने लगीं (रू॰ ७५)। ईश (शिव) ने राम के संबंधी का श्रेष्ठ सर बड़े चाव से उठाया (रू॰ ७६)। राम और रावण सरीखा युद्ध करने वाला योगी जंघारा भी भीषण युद्ध करके स्वर्ग लोक गया (रू॰ ७७—७८)। अब सुलतान ग़ोरी अस्त्र शस्त्र से सुसज्जित होकर स्वयं जंग करने के लिये झुका। यह समाचार सुनकर लंगा-लंगरी-राय सात सामंतों को लेकर युद्ध भूमि में धँस पड़ा और अपनी तलवार चलाने की कुशलता से शत्रुओं की तनवारों (की मूठें) ढीली करने लगा (रू॰ ७९)। कुछ समय बाद लंगरी राय के एक नेत्र में बाण घुस गया और वायाँ हाथ कट गया तब भी वह बराबर शत्रु से ताड़ता रहा (रू॰ ८१)। दूसरी ओर लोहाना ने महमूद की पीठ फोड़कर निकलता हुआ बाण मारा और कटार लेकर झपटा ही था कि एक मीर ने तलवार के वार से उसे गिरा दिया (रू॰ ८२)। एक मीर और मारूफ ख़ाँ ने मिलकर बिड्डर को मार डाला (रू॰ ८३)। अब तक ग़ोरी के चौंसठ ख़ान और पृथ्वीराज के तेरह श्रेष्ठ वीर काम आये (रू॰ ८४)। (रात्रि होने से युद्ध बन्द हो गया और) दूसरे दिन ग़ोरी ने दस हाथी आगे किये और तातार ख़ाँ की आज्ञा पाते ही कुहक बास और गोले बरसने लगे। इस पर पृथ्वीराज का हाथी भागने लगा और महाराज कुब्ध हो उठे। उनको अस्थिर देख सामंतगण मोह त्याग कर वज्र सदृश तलवारों के वार करने लगे (रू॰ ८५)। मीर भी आधे आधे योजन दौड़ कर साँग चलाने लगे और ग़ोरी चक्र फेंकने वाले सैनिकों की चार पंक्तियों के आगे पाँच सौ शेख़ों को