पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३९४

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( १५६ ) कन्नौज के अन्य नाम जैसे महोदया, कुशस्थल, कुशिक आदि भी साहित्य में पाये जाते हैं । 'युवान च्वांग' का कथन है कि इस नगर का नाम कुसुमपुर (पुष्पों का नगर ) था परन्तु ऋषि ( the great tree-rishi ) के श्राप से बाद में कान्यकुब्ज हो गया । कान्यकुब्ज केवल नगर का नाम नहीं था वरन् नगर के चारों ओर के एक सीमित प्रदेश को भी कान्यकुब्ज कहते थे जैसे आजकल बम्बई और मद्रास कहलाते हैं। पुराणों और महाभारत में हम कन्नौज के राजवंशों का हाल पढ़ते हैं । युधिष्ठिर ने दुर्योधन से कुशस्थल (कन्नौज), वृकस्थल, माकन्दी, चारवट और पाँचवाँ कोई एक नगर माँगे थे। पालि साहित्य में हम पढ़ते हैं कि नायत्रिंश नामक स्वर्ग से भगवान् बुद्धदेव कन्नौज में ही उतरे थे और उपदेश दिया था । aata का ऐतिहासिक वर्णन फाहियान की यात्राओं में भी मिलता है। । । छठी शताब्दी में कन्नौज मौखरी राजायों की राजधानी था। ईशान- वर्मन और सर्ववर्मन के राज्यत्वकाल में कन्नौज राज्य का प्रभुत्व और प्रताप बढ़ा जिसके फलस्वरूप गुप्त राजानों से युद्ध हुए । अंत में कन्नौज मगध का स्थानापन्न हो राजनैतिक केन्द्र हो गया। मौखरियों के पश्चात् सातवीं शताब्दी में थानेश्वर के हर्ष ने कन्नौज का शासन-सूत्र अपने हाथ में ले लिया । हर्ष की मृत्यु होने पर पचास वर्ष तक कन्नौज अशान्ति और विद्रोह का व्यखाड़ा रहा । फिर प्रतिहार भोज प्रथम और महेन्द्रपाल प्रथम के शासनकाल में कन्नौज में शान्ति स्थापित हो उन्नति प्रारम्भ हुई, और इसका विस्तार सौराष्ट्र, मगर, राजपूताना, गोरखपुर, उज्जैन, करनाल और बुन्देलखण्ड तक हो गया । सन् २०१८ ई० में महमूद गजनवी के आक्रमण ने कन्नौज साम्राज्य को धक्का पहुँचाया, परन्तु गाहड़वाल राजाओं ने क्षति पूर्ति कर उसे पुन: समृद्धिशाली बना दिया । 'न्त में बारहवीं शताब्दी में सिहाबुद्दीन गोरी ने सन् १९६२ में चौहान साम्राज्य उखाड़कर' (Firishta Briggs - Vol. I, p. 277 ) – 'सन् १९६४ में कन्नौज साम्राज्य को नष्ट-भ्रष्ट कर डाला' [ ताज-उल-मासीर ; History of India. Elliot. - Vol. II. p. 297 हो गया और बड़े-बड़े साम्राज्यों के वैभव पराभव का साधारण नगर मात्र रह गया । | साम्राज्य तो ध्वंस साक्षी कन्नौज एक आल्हा ऊदल की बारहदरी, जयचंद के दुर्ग और संयोगिता के गंगातट पर महल के खण्डहर आज भी अपने युग की गाथानों की स्मृति के प्रतीक हैं ।