पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३९७

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( १५६ ) अहमदशाह दुर्रानी ने इसे फ़ानी राजधानी बनाया । सन् १८३६ ई० में सर जान केन ने इस पर अधिकार कर लिया, परन्तु दिसम्बर १६, सन् १८४१ ई० से मार्च ६, सन् १८४२ तक गानों ने फिर इसे छोन लिया । इसी वर्ष वसंत में जेनरल नाट ने ग़ज़नी का घेरा डाला और दुर्ग तथा दीवाल की रक्षा के बच्चाय तोड़ कर महमूद ग़ज़नवी द्वारा ले जाये गये सोमनाथ के फाटक उठा लिये। "यदि तुन प्रबल याक्रमण द्वारा राजनी और काबुल का अधिकार पा सकना तो परिस्थिति के अनुसार कार्य करना तथा ब्रिटिश सेना की मानव भावना को अक्षुण्ण रखते हुए उसके अतुलित बल की अमिट छाप छोड़े आना | सुलतान ) महमूद गजनवी की कब्र पर लटकता हुआ उसका ( राज ) दंड और उसकी कब्र ( मकबरे ) के दरवाजे जो सोमनाथ मंदिर के द्वार हैं, तुम अपने साथ ले थाना । तुम्हारे आक्रमण की सफलता के ये उचित विजय चिह्न होंगे ।" [ लार्ड एडिनबरा द्वारा जनरल नाट को (२८ मार्च १८४३ ई० की 'गुप्त समिति' की बैठक में भेजे हुए पत्र का एक अंश ) ] महमूद ग़ज़नवी की कब्र के चंदन के द्वार बड़े समारोह के साथ भारत परन्तु पीछे सिद्ध हुआ कि वे सोमनाथ वाले द्वार न थे 'लाल किले में रख दिया गया जहाँ वे वर्ष में लाये गये । अस्तु उन्हें बागरा जा सकते हैं। आज भी देखे " जून सन् १८६८ में शेराली ने राजनी पर फिर अधिकार कर लिया । सन् १८७८-८१ के अफगान युद्ध के बाद अफगानिस्तान की परि- स्थिति जो बदली तो निर्वासित अब्दुर्रहमान फिर अमीर हो गया । अंग्रेज़ों ने उससे सुलह कर ली और काबुल, राजनी, जलालाबाद और कंधार उसे दे दिये । ग़ज़नी तभी से अफग़ानिस्तान के शाहों के पास चला खाता है । अफगानिस्तान यद्यपि अनेक घटनायें तब से हो चुकी हैं परन्तु ग़ज़नी का उनमें विशेष हाथ नहीं रहा” (Afghanistan, Macmumn. pp. 168, 206). 1 श्राज पुरानी इमारतों में राजनी में १४० फिट ऊँचे दो मीनार पर- स्पर ४०० गज की दूरी पर हैं। उत्तरी मीनार के कूफिक लिपि के लेखों से पता लगता है कि वह महमूद गजनवी का बनवाया हुआ है और दूसरा उसके पुत्र मसऊद का है । राजनी दुर्ग, नगर से उत्तर पहाड़ियों के बाद है । इस नगर से एक मील आगे काबुल जाने वाली सड़क पर एक साधारण वाग में प्रसिद्ध विजेता महमूद की क्रय हैं। राजनी से ऊन, फलों और खालों का व्यापार भारतवर्ष से होता है ।