पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/३९८

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( १६० ) [वि० वि० देखिये -- Visit to Ghazni, Kabul and Kan- dhar. G. T. Vigne, p. 134, Afghanistan, Hamilton Angus, pp. 343-45, Afghanistan, Muhammad Habib; History of Afghanistan, Malleson; History of Afgha- nistan, Walker; Afghanistan, Godard ( Paris); Geogra- phy of Ancient India, Cunningham, pp. 45-18; His- tory of Afghanistan, Macmunn and Afghanistan, Jamal- uddin Ahmad and Md. Abdul Aziz, 1936.] दिल्ली (> दिल्ली ) - यमुना नदी के किनारे अक्षांश २८° ३८ उत्तर और देशांतर ७७° १२ पूर्व में बसा हुआ एक प्रसिद्ध और प्राचीन नगर है जो बहुत दिनों तक हिन्दू राजाधों और मुसलमान बादशाहों की राजधानी था और जो सन् १९१२ फिर ब्रिटिश भारत की भी राजधानी हो गया । जिस स्थान पर वर्तमान दिल्ली नगर हैं उसके चारों ओर १०-१२ मील के घेरे में भिन्न-भिन्न स्थानों में यह नगर कई बार बसा और कई बार उजड़ा। कुछ विद्वानों का मत है कि इंद्रप्रस्थ के मयूर वंशी अंतिम राजा 'दिलू' ने इसे पहले पहल बसाया था, इसी से इसका नाम दिल्ली पड़ा । [ पृथ्वीराज रासो सम्यौ ३ ] - दिल्ली किल्ली प्रस्ताव में लिखा है कि पृथ्वीराज के नाना अनंगपाल ने एक बार एक गढ़ बनवाना चाहा था । उसकी नींव रखने के समय उनके पुरोहित ने अच्छे मुहूर्त में लोहे की एक कील पृथ्वी में गाड़ दी और कहा कि यह की शेषनाग के मस्तक पर जा लगी है। जिसके कारण आपके तर (तोमर) वंश का राज्य अचल हो गया। विश्वास न हुच्चा और उन्होंने वह कील उखड़वा दी । राजा को इस बात पर कील उखाड़ते ही वहाँ से रक्त की धारा निकलने लगी । इस पर राजा को बहुत पश्चाताप हुआ । उन्होंने फिर वही कील उस स्थान पर गड़वाई, पर इस बार वह ठीक नहीं बैठी, कुछ ढीली रह गई । इसी से उस स्थान का नाम 'ढीली' पड़ गया जो बिगड़- कर 'दिल्ली' हो गया। दिल्ली में यह कील अब भी देखी जा सकती है । परन्तु कील या स्तंभ पर जो शिलालेख है उससे रासो की उपयुक्त कथा का खंडन हो जाता है क्योंकि उसमें अनंगपाल से बहुत पहले के किसी चंद्र नामक राजा ( शायद चंद्रगुप्त, विक्रमादित्य ) की प्रशंसा है । नाम के विषय में चाहे जो कुछ हो पर इसमें संदेह नहीं कि इसकी पहली शताब्दी के