पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/४०७

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( १६६ ) इसी शिव पार्वती विवाह प्रसंग में तुलसी ने मैना द्वारा अपना भवन Sare वाले नारद की खासी ख़बर ली है-- नारद कर मैं कह बिगारा । भवन मोर जिन्ह वसत उजारा || दीन्हा | कीन्हा ॥ अस उपदेश उमहिं जिन्ह चौरे वरहि लागि तपु साँचे उन्ह के मोह न उदासीन धन वास न पर घर घालक लाज न ate कि जान प्रसव कै माया । जाया || भीरा । पीरा || परन्तु तुलसी ने विद्यापति की अपेक्षा मैना का विवाद नारद द्वारा ही मिटवाया है; वे अपनी साक्षी हेतु सप्त ऋषियों को अवश्य ले गये थे- भयना सत्य सुनहु मम वानी | जगदंबा तव सुता भवानी ॥ कबीर ने नारद को ज्ञानी स्वीकार करते हुए ब्रह्मा के समकक्ष रखते हुए भी मन की गति समझने में तथा उन्हें शिव और समर्थ बताया है---- सिव विरंचि नारद मुनि ग्यानी, मन की गति उनहूँ नहीं जानी ॥ जायसी ने 'पदमावत' में नारद को झगड़ा कराने वाला कहा है और 'अखरावट' में कबीर की श्रेष्ठता प्रतिपादित करते हुए नारद के स्वमुख से अपनी पराजय अंगीकार कराई है---- होगा । ना - नारद तव रोह पुकारा । एक जोला है सौं मैं हारा ॥ संस्कृत में नारद के वि०वि० के लिये 'नारद पुराण' देखना उचित महमा [< महामाया] दुर्गा-आदिशक्ति (देवी)-- शुक्ल यजुर्वेद वाजसनेय संहिता में रुद्र की भगिनी अंबिका का उल्लेख इस प्रकार है- “हे रुद्र ! अपनी भगिनी अविका के सहित हमारा दिया כי "हुआ भाग ग्रहण करो ।" इससे जाना जाता है कि शत्रुत्रों के विनाश यादि के लिए जिस प्रकार प्राचीन ग्रागण रुद्र नामक कर देवता का स्मरण करते थे, उसी प्रकार उनकी भगिनी अंबिका का भी करते थे । वैदिक- . काल में अंबिका देवी वह की भगिनी ही मानी जाती थीं। तलवकार (केन) उपनिषद में यायिका है- एक बार देवताओं ने समझा कि विजय