पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/४०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

________________

( १६८८ ) इतिहास और पुराणों में नारद देवर्षि कहे गये हैं जो नाना लोकों में विचरते रहते हैं और इस लोक का संवाद उस लोक में दिया करते हैं । हरिवंश में लिखा है कि नारद ब्रह्मा के मानस पुत्र हैं। ब्रह्मा ने प्रजा सृष्टि की अभिलाषा करके पहले मरीचि, अत्रि यादि को उत्पन्न किया, फिर सनक, सनंदन, सनातन और सनत्कुमार, स्कंद, नारद तथा रुद्रदेव उत्पन्न हुए ( हरिवंश, ०१) । विष्णु पुराण में लिखा है कि ब्रह्मा ने अपने सब पुत्रों को प्रजा सृष्टि करने में लगाया पर नारद ने कुछ बाधा डाली इस पर ब्रह्मा ने उन्हें शाप दिया कि "तुम सदा सब लोकों में घूमा करोगे; एक स्थान पर स्थिर होकर न रहोगे ।" महाभारत में इनका ब्रह्मा से संगीत की शिक्षा प्राप्त करना लिखा है । भागवत, ब्रह्मवैवर्त यादि पीछे के पुराणों में नारद के सम्बन्ध में बड़ी लम्बी चौड़ी कथायें मिलती हैं । जैसे, ब्रह्मवैवर्त में इन्हें ब्रह्मा के कंठ से उत्पन्न बताया गया है और लिखा है कि जब इन्होंने प्रजा की सृष्टि करना स्वीकार किया तब ब्रह्मा ने इन्हें शाप दिया और ये गंधमादन पर्वत पर उपवर्हण नामक गंधर्व हुए। एक दिन इन्द्र की सभा में रंभा का नाच देखते देखते ये काम मोहित हो गये इस पर ब्रह्मा ने फिर शाप दिया कि "तुम मनुष्य हो ।” द्रुमिल नामक गोप की स्त्री कलावती पति की श्राशा से ब्रह्म- वीर्य की प्राप्ति के लिये निकली और उसने काश्यप नारद से प्रार्थना की । अन्त में काश्यप नारद के वीर्य भक्षण से उसे गर्भ रहा। उसी गर्भ से गंधर्व-देह त्याग कर नारद उत्पन्न हुए। पुराणों में नारद बड़े भारी हरि भक्त प्रसिद्ध हैं। ये सदा भगवान का यश वीणा बजा कर गाया करते हैं | इनका स्वभाव कलह प्रिय भी कहा गया है इसीसे इधर की उधर लगाने वाले को लोग 'नारद' कह दिया करते हैं । पृथ्वीराज रासो मैं नारद, अप्सराओं के साथ युद्ध भूमि के दर्शक रूप में दिखाये गये हैं । विद्यापति ने मैना द्वारा अपनी पुत्री पार्वती के लिए बूढ़े शिव को जामाता बना कर लाने वाले नारद को "तेसरे बइरि भेला नारद बामन, जै बूढ़ आनल जमाई, गे माई” केवल बैरी मात्र ही नहीं कहा वरन् उनकी दुर्गति करने के लिये भी प्रस्तुत हो गई- धोती लोटा पतरा - पोथी एही सब लेबन्हि छिनाई । जौं किg बजता नारद बाभन दाढ़ी घर घिसिश्राएब, गे माई ।