पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/४१४

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( १७६ ) 75 सुमेरु-- भागवत के अनुसार सुमेरु पर्वतों का राजा है । यह सोने का है। इस भूमंडल के सात द्वीपों में प्रथम द्वीप जंबू द्वीप के ( जिसकी लम्बाई ४० लाख कोत और चौड़ाई ४ लाल को हैं) - नौ वर्षो में से इलावृत्त नामक अभ्यंतर वर्ष में यह स्थित है। यह ऊँचाई में उक्त द्वीप के विस्तार के समान है । इस पर्वत का शिरोभाग १२८ हजार कोस, मूल देश ६४ हजार कोस और मध्य भाग ४ हजार कोस का है। इसके चारों ओर मंदर, मेरा मंदर, सुपार्श्व और कुमुद नामक चार याश्रित पर्वत हैं। इनमें से प्रत्येक की ऊँचाई और फैलाव ४० हजार कोस है । इन चारों पर्वतों पर श्रम, जासुन, कदंब और बढ़ के पेड़ हैं जिनमें से प्रत्येक की ऊँचाई चार सौ कोस है । इनके पास ही चार हृद भी हैं जिसमें पहला दूध का दूसरा मधु का, तीसरा ऊख के रस का और चौथा शुद्ध जल का है। चार उद्यान भी हैं जिनके नाम नंदन, चैत्र रथ, वैभ्राजक, और सर्वतोभद्र हैं। देवता इन उद्यानों में सुरांगनाओं के साथ बिहार करते हैं। मंदार पर्वत के देवच्युत वृक्ष और मेरु पर्वत के जंबू वृक्ष के फल बहुत स्थूल और वृहदाकार होते हैं । इनसे दो नदियाँ श्रमणोदा और जंबू ( नदी ) बन गई हैं । जंबू नदी के किनारे की जमीन की मिट्टी तो रस से सिक्त होने के कारण सोना ही हो गई है । उपार्श्व पर्वत के महाकदंब वृक्ष से जो मधु धारा प्रवाहित होती है, उसका पान करने वाले के मुँह से निकली हुई सुगंध चार सौ कोस तक जाती है। कुमुद पर्वत का वट वृक्ष तो कल्पतरु ही है । यहाँ के लोग जीवन सुख भोगते हैं । सुमेरु के पूर्व जठर और देवकूट, पश्चम में पवन और परियात्र, दक्षिण में कैलाश और करवीर गिरि तथा उत्तर में त्रिशृंग और मकर पर्वत स्थित हैं। इन सब की ऊँचाई कई हज़ार कोस है । सुमेरु पर्वत के ऊपर मध्य भाग में ब्रह्मा की पुरी है, frent fear हज़ारों कोस है । यह पुरी भी सोने की है। नहि पुराण के अनुसार सुमेरु के तीन प्रधान शृंग हैं जो सफटिक, वैदूर्य और रत्नमय हैं। न शृंगों पर २१ स्वर्य हैं जिनपर देवता निवास करते हैं । सुमेरु पर्वत का पुत्र 'त्रिकूट' नाम से विख्यात है जिस पर रावण की लंका जली हुई थी । वामन पुराण के अनुसार त्रिकूट क्षीरोद समुद्र 1 में स्थित है जिस पर देवर्षि, विद्याधर, किन्नर तथा गंधर्व क्रीड़ा करते हैं । इसकी एक चोटी सोने की है जिस पर सूर्य श्राश्रित है, दूसरी चाँदी की है जिस पर चन्द्र याश्रित और तीसरी हिम से आच्छादित है। नास्तिकों की यह पर्वत नहीं दिखाई देता । ¡