पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/८२

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( ७२ ) जो पढय तत्त रासो सुगुर । कुमति मति नहिं दरसाइय ॥८८, विधि ( कर्म ) और बिनान ( विज्ञान ) का सर्वस्व छिद्रान्वेषक को नहीं श्रा सकता परन्तु जो विशुद्ध गणों वाले सज्जन वृन्द हैं उनको इसका वर्शन और रस सरसित होता है.-- कुमति मति दरसत तिहिं विधि विनान अब्बान । तिहिं रासौ जु पवित्र गुन । सरसौ अन्न रसान 1८९, स०१ (E) महाकाव्य में न बहुत छोटे और न बहुत बड़े पाठ से अधिक सर्गों का निदान आचार्य ने किया है। श्रादिकाव्य 'रामायण' में ७ कांड हैं और 'महाभारत' इतिहास में १८ पर्व हैं, कमारसम्भव में १७ सर्ग हैं. रघुवंश में २१ सर्ग हैं, शिशुपाल-बध में २० सर्ग हैं, नैषध में २२ सर्ग हैं, सेतुबंध में १५ अाश्वास हैं, ( स्वयम्भू के ) पउमचरिउ में ५ कांड हैं परन्तु पृथ्वीराज- रासो में ६६ समय या प्रस्ताव हैं । जहाँ तक छोटे और बड़े प्रस्तावों का प्रश्न है, छोटे प्रस्तावों में रासो के चौथे समय में ३१ छन्द हैं, १० वे में ३६, ११ वें में ३३, १५ वें में ३६, १६ वें में १८, २२ वें में २२, २३ वें में ३५, ३५ 4 में ४६, ४० वें में २४, ४१ वे में ३५, ४६ ३ में ४३, ५३ वें में ३१ और ६५३ में १२ हैं तथा बड़े प्रस्तावों में पहले समय में ७३ छन्द हैं, दूसरे में ५८६, २४ ३ में ४६४, २५ ३ में ७८६, ६१ वें में २५५३, ६६ वें में १७१४, ६७ वें में ५६८८ और महोबा समय में ८२८ हैं; इनके अतिरिक्त शेष प्रस्तावों में ५५ से लेकर ५.३ छन्द तक पाये जाते हैं। नीचे दी हुई तालिका से यह सर्वथा स्पष्ट हो जाता है कि महाकाव्य का यह नियम ससो में अत्यन्त शिथिल है-. mawwanima- समय समय या प्रस्ताव छन्द संख्या छन्द प्रकार या छन्द संख्या छन्द प्रकार छन्द प्रस्ताव २१० ५८६ 10 1 Gmku १०८ ३६७ १५६ १८६