पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
(८०)

समय इक्यावन के हाँसीपुर युद्ध में सामंतों की विजय और मुसलमान सेना की पराजय का वृत्तान्त समय बावन में सुनकर गोरी का आक्रमण तथा परास्त होने के विवरण एक सूत्र में बँध जाते हैं।

तिरपनवाँ समय महुवा दुर्ग में ग़ोरी से युद्ध के कारण की झुकी द्वारा जिज्ञासा—

सुक सुकी सुक संभरिय। बालुक कुरंभ युद्ध॥
कोट महुआ साह दल। कहौ आनि किम रुद्ध॥१,

के फलस्वरूप शुक द्वारा उत्तर प्रारम्भ हो जाता है और इस मोर्चे परास्त गोरी का भेद या जाने के कारण पज्जून राय से बैर लेने के लिये नागौर जा धमकने वाला समय चउवन उससे पृथक नहीं प्रतीत होता। प्रासंगिक बार्ता होने के कारण उनकी कथा एक समय के अन्तर्गत रखी जा सकती थी परन्तु उस स्थिति में संभवतः पजून की वीरता की छाप गहरी न पड़ती।

समय पन्नपन में 'राह रूप चहुचान, मान लग्गौ सु भूमि पल से पृथ्वीराज की प्रशंसा करके, उनका सामंतों पर दिल्ली का भार छोड़कर को जाने पर जयचन्द्र से युद्ध का विस्तृत वर्णन है। 'चित्रंगी उप्पर तमकि, चढ़ि पंगुरौ नरेस के साथ समय छप्पन में जयचन्द्र और रावल समरसिंह का युद्ध दिया गया है तथा सत्तावनवें समय में 'दिल्ली वै चहुचान, तपै अति तेज बग्गवर' से प्रारम्भ करके, प्रसंग लाकर कैमास वध की कथा है। सावन में सामंतों के सिरताज पृथ्वीराज कैमास की मृत्यु से दुखी दिखाये गये हैं―

जह सच मुख्य गवष्य यह। नह सत्र अंदर राज॥
उर अं कैमास दुध। सामंता सिरताज॥१,

इस वर्णन द्वारा नवीन वार्ता को पूर्व कथा से सम्बन्धित कर दुर्गा केदार और चंद का वाद-विवाद, समय में कह डाली गई है। गोरी का आक्रमण तथा पराजय की कथा इस समय में डाली गई है।

समय उनसठ में तक अनेक युद्धों के विजेता पृथ्वीराज के ऐश्वर्य तथा दिल्ली नगर और दरबार का समयानुकूल वर्णन बड़े कौशल से किया गया है। यद्यपि पूर्व 'समय' की वार्ता से इसका कोई सम्बन्ध नहीं परन्तु उपयुक्त अवसर पर लाये जाने के कारण यह खटकता नहीं है। दरबार का वर्णन 'यो तपै पिथ्थ दिल्ली सजोर' के साथ समाप्त होता है जिसमें साठवें समय का प्रारम्भ 'बैठो राजन सुभा विराजं, सामँत सूर समूहति साजं'