पृष्ठ:रेवातट (पृथ्वीराज-रासो).pdf/८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ७९ )

सोमेस' कहकर पूर्व समय से श्रृंखलित कर दिया गया है। परन्तु जयचन्द्र की प्रेरणा से गोरी का दिल्ली पर आक्रमण वाला समय इकतालिस और चंद का द्वारिका गमन समय बयालिस पुन: दो हैं। बयालिस समय के अन्त में अन्हलवाड़ापन में चंद को पृथ्वीराज का पत्र मिला किशोरी आ रहा है और वह कूच पर कूच करता हुआ दिल्ली जा पहुँचा―

प्रथु कागद चंदह पढ़िय। आयाै परि राजनेस॥
कूच कूच मग चंद बरि। पहुंच्यौ घर दानेस॥८५,

इस कथन से ग़ोरी-युद्ध वाला समय पूर्व कथा-सूत्र से सम्बन्धित से हो गया है।

पिता सोमेश्वर के वध के कारण पृथ्वीराज दिन-रात भीमदेव से बदला लेने की ज्याला से धधकते रहते थे―

उर अड्डी भीमंग नृप। नित्त पटक्कै थाइ॥
अग्नि रूप प्रगटै उरह। सिंचै सत्रु बुझाइ॥ १,

इस प्रकार प्रारम्भ करने के कारण तथा सौम-वध और पृथ्वीराज की प्रतिज्ञा से परिचित होने के कारण यह घटना स्वतंत्र होते हुए भी प्रासंगिक नहीं हो पाती।

देवलोक की वार्ता प्रारम्भ करने वाला समय पैंतालिस तथा संयोगिता के जन्म, शिक्षा और पृथ्वीराज के प्रति अनुराग वर्णान करने वाले समय और सैंतालिस परस्पर सम्बन्धित होते हुए भी पूर्व और पर समय के सम्बन्ध से विछिन्न हैं।

समय अड़तालिस जयचन्द्र का राजसूय यज्ञ और पृथ्वीराज द्वारा उसका विध्वंस वर्णन करता है जिसके अंत में बालुकाराय की पत्नी का विलाप करते हुए जयचन्द्र के पास जाना―

रन हारी पुकार पुनि। गई पंग पंघाहि॥
जग्य विध्वंसिय नूप दुलह। पति जुग्गिनिपुर प्राहि॥२७५,

इस कथा को आगामी समय उन्चास की वार्ता से आसानी से जोड़ देता है और जयचन्द्र की पृथ्वीराज पर चढ़ाई का कारण स्पष्ट हो जाता है। पचासवें समय में पंग और चौहान का युद्ध वर्णन होने के कारण वह पूर्व समय से संयुक्त दिखाई पड़ता है। दिल्ली राज्य में अवचन्द्र की सेना द्वारा लूट-खसोट से प्रारम्भ होने के कारण―

ढुंढी फौज जयचंद फिरि। बर लभ्यौ चहुआन॥
चँपि न उप्पर जाहि बर। रहै ठठुक्कि समान॥१,