पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/१०५

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अठारहवाँ वयान ।। अलहम्द, लिल्लाह , कमरे के अन्दर पहुंचते ही मैंने समझा कि ब, ॐ अहिलं की डू के संजर्म में गया । मोरङल मेरे हाथ में है, सो चटमैं भोरङल बालियों कें, जो कि गिनती में सौ से ज़ियादह थीं, कुंड में मिल गया और च च कर, चारों तरफ़ नज़र दौड़ा २ कर वहां की कैफियत देखने लगा । पेश्वर में उस अलीशभर कमरे का कुछ थोड़ा बयान करत हैं, जो कि उस वक्त मेरी नज़रों में चकाचौध पैदा कर रहा था। वह कमरा अंदाज़नं चालीस पचास हाथ से कम लंबा चौड़ा न था । वह चौखूटा था और उसके इर बहार तरफ़ बारह बारह दरवाज़े बने हुए थे। दरवाजों के बीच की दीवारों के संहार चारों तरफ़ वाचन दुआ अ ल . ह क्यः की ओर उतनहि ब्रौं खौ तसवीर लटक रहीं थीं। छत डिश में एक सौ न झाड़ लदक रहे थे और देर में पँचशाखे फानूस में हुए थे। कमरे में एक बालित मोदी, दलदार भखमली कालीन बिछा हुआ था और अंक जानिब को एक सोने का लखन जिसमें जबजा जाहिरात जड़े हुए | थे, बिया दुका था ! उस पर मोतिय की झङ्कलों का जरदोज़ी .. चंद्रोचा सोने की डाँड्यों के सहारे हुआ था श्री जरदोजी . काम के मुखमली गद्दी तकिए लगे हुए थे । तख्त के : दाहिने, बाँध बीस ३ सुनहरी कुर्सियाँ बिछी हुई थीं और पीछे इतनी बड़ी चौकी | बिछी हुई थी, जिस पर सौ भोरवालवालियाँ मज़े में खड़ी हो सके । .. गुरज़ यह किं वह कमरा इस कदर सजा हुअा था कि जिसका पूर पूरी क्याम करना मेरो साकत से बाहर हैं। उस वक्त यहीं पर, जब कि मैं पहुंचा था, मोरङ्लबालियों और मानें बजने-बालियों के अलावे और कोई न था । मरे में झाड़ों और फानूस में मोमबत्तियाँ जल रही थीं और . साज़ मिलायी जा रहा था। मैं भी दीगर मोरवालवालियों के छ