पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/१०४

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अब दो एक बातों को और याद रखो और उसे हर्गिज़ न भयो । .. मैने कहा, वह क्या ? उसने कहा गो ऐसा मौका न आएगा, लेकिन अगर तुम्हारा नाम या रहने की जगह कोई पूछे स तुम उस से सिर्फ इतना ही शहना कि, मेरा नाम रसीदन है और मैं एकसौ अड़तालीस कोठरी में, जोकि बीबी गुलअन्दम वैगम के कमरे के बगल में है, रहती हूं।" मैं समझती हूं कि इसकी जरूरत हर्गिज़ न पड़ेगी, लेकिन अगर कोई मौका ऐसा जाये तो तुम यही बयान करना।" यह सुन कर मैं निहायत खुश हुआ और बोला, “ तो क्या मैं इस वक्त हज़रत शुलअन्दाम बेगम के रूबरू खड़ा हूँ ? ' । उसने मुस्कुरा कहा,“ नहीं, लेकिन उन बेगम साहिबा की मेहरबानी मुझ पर इस दर्ज कर रहती है कि उनका नाम और उनके बगल में अपने रहने का पता बतलाने पर फिर तुम से कोई कुछ न कहेगा और ने फिर किसी किस्म का सवाल करेगा ।” . मैने कहा,-* अच्छी बात है, मैं इन बातों पर खयाल रक्यूंगा और जो कुछ खेल किस्मत दिखलाएगी, उसे शौक से देखूगा ।' आस्विर, फिर वह नाजुनी मुझे साथ लेकर एक कोठरी में गई ओर वहाँ से ज़ीने बढ़कर एक और कोठरी में निकली । उसका दरवाजा खोलकर जब वह मुझे लिए हुई एक बड़े अलीशान बाग में • निकली तो यकबयक मेरी आँखें चौंधिया गई क्योंकि उस आलीशान बाग में इस कदर रौशन हो रही थी कि रात के वक्त भी दिन का समी नज़र आता था। वह रौशनी इतनो ज़ियादह और साफ थी कि अगर ज़मीन में सुई गिर पड़े तो वह आसानी से उठा ली जा : सके । मैं रात के सबब उस बाग का, जिस में मैंने पहले ही पहिल कम रक्खा था, अंदाज़ा नहीं कर सकता था कि वह कितना लंबा और चौड़ा है, लेकिन इतना मैं ज़रूर कहूंगा कि वह चोरी कई सौ वीधे ज़मीन को घेरे हुए था। ...उसके बीचों बीच, जो खद लंबा चौड़ा तालाब बना हुअ था,