पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/१०७

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उन्नीसवां बयान । • एक घंटे तक यही सिलसिला जारी रहा, इसके बाद एक बाँद ने आकर अर्ज किया कि, “जहाँपनाह तशरीफ लाते हैं। यह सुनतेही गाना बजाना मौकूफ़ होगया और सब वैठी हुई । औरतें अपनी अपनी जगह पर खड़ी हो गई । बेगम साहिबा भी। आहिस्ते से तख्न से उतरीं और उसी वक्त बादशाह ने दो वदियों के कंधों का सहारा लेते हुए कमरे के अन्दर पैर रखा। .... उनके आतेही चारों तरफ से झुक झुक कर, आदबिअजें हैं' की सदा आने लगी और बेगमसाहिबा ने बड़े तपाक के साथ हाथ मिलाकर बादशाह को तख्न पर ला बैठाया और खुद वह उनके बाईं तरफ बैठ गई। उनके बैठने पर, वे नाज़नी भी बैठीं, जिन्हें बैठने की हैसियत थी वाकी सब सही रहों के गदेबजाने का बाजार फिर गर्म हुआ। और बादशाह ने शराब माँगी । ::: उनके हुक्म की तामील फ़ौरन की गई लँडियों ने शराय की वोतल और जमुईद के प्याले ला हाज़िर किए। पैगमसाहिबा शराब भरभर कर बादशाह को पिलाने लग और दस पांच प्याले पोवेहो बादशाह सलामत झोके खाने हों। आधे घंटे के बाद, मेरी नज़र -गाने बजानेवालियों के पीछे गई तो मैंने क्या देखा कि कई खोजों के साथ कंबतं आसमानी खड़ी हुई है और वह मेरी जानिब कोईगली. उठा उठाकर उन खोजों के साथ कुछ बातें कर रही है । यह देखतेही गया मेरी रूह तन से कूच रगई और मुझ पर कंपकंपी सचाई हैं: करीब था कि मैं गश खाकर वहीं रिपडू, इतनेही में पीछे से किसीने मुझे ज़ोर से चुटको काटो । मैने तुरत पीछे फिरकर देखा, लेकिन इसे । न्यात का सुराग न लगा सका कि मुझे किसने चुटकी भरी, क्योंकि मेरे पीछे की कतार में जो मोरङलवाली ठीक मेरे पीछेथो, इसकी नज़र -सामने, मानेवालियों के बानिव ... गरज, मैने अपने दिल को मजबूत करके अपने तई खुद सम्हालह,