पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/१०८

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११० :* लखनऊ की कब्र * . और सामने की तरफ देखा आसमानी या खोजे, जो कि अभी कुछ ही देर पहिले सामने वाले दरवाजे पर थे वहाँ से कहीं चले गए थे। | ठोक एक घंटे ठहर कर बादशाह सलामत तख से उठकर नीचे उतरे और वहाँस्ने चले गए । उस वक्त सारी महिफ़िल में सन्नाटा छां गया था और पैगम साहिबा बादशाह सलामत को. दरवाजे तक पहुंचा आई थीं । बादशाह को पहुंचाकर बेगमसाहिबा लौट आई और उनके तख्न पर बैठतेही फिर गाना बजाना शुरू हुआ। थोड़ी ही देर तक गाना बजाना हुअा होगा कि आसमानी को फिर मैने कमरे के अंदर देखा। इस वक्त वह अकेली थी और बल से कतराती हुई तख्त के फ़रीब बढ़ रही थी। यह देखकर में फिर थीं उठा और दिल ही दिल में मैने यह समझलिया कि अब मेरी जाने की खैर नहीं है। उस वक्त जो कुछ मेरे दिल पर गुजर रही थी, उसका बयान में नहीं कर सकता क्योंकि दरअसल उस वक्त में ज़िन्दों में न था और मेरे होश हवा दुरुस्त न थे। लेकिन फिर भी मैं अपने तई सम्हाला जाता था और नज़दीक खड़ी शुई मौत को नाउम्मीदो की नज़रले तक रहा था। आसमानी ने तख्त के करीब पहुंचकरशाहान आदाब किया और .. एके अंत बेगम साहिबा के आगे रखकर जवाब का इन्तजार किया। । पैगम ने खत को देखकर आसमान से पूछा, इसमें क्या है ? आसमानी,- हुजूर ! इसके अन्दर एक बहुतही संगीन वार्दात को खबर है। इतना सुनकर बेगम साहिबा ने उस लिफाफे को उठाकर और पीछे घूमकर मेरे हाथ में ( वह लिफाफा) देदिया और कहा,

  • देख तो हो, इसके अन्दर क्या लिखा है ! * यह सुनकर मैंने कांपते हुए हाथों से उस ख़त को हाथ में लिया।

और लिफ़ाफा फाड़कर खोला और पढ़ा तो उसमें नीचे लिखी हुई कई सतरे दर्ज थीं,