पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/२७

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और मुमकिन है कि उसकी जुदाई में बंधुत जल्द पूरा सौदाई हो जाऊगा। जब से प्यारी दिलाराम नज़रों से दूर हुई है, न मेरा दिल । तस्वीर में लगता है और न किसी दूसरे काम में, बस, सिर्फ जब भूक लगती तो मैं कुछ खा लेता और बराबर सौदाइयों की तरह इधर उधर घूमता फिरता ख़ाक खाना करती हूं।

खैर, अब तो मेरी मौत आहीं चुकी है और मुमकिन है कि वह मुझे बड़ी बेरहमी के साथ गले लगाएगी, लेकिन कोई हर्ज नहीं । क्योकि शुक्र है खुदा का कि मेरे बाद अब कोई मुझे रोनेवाला नहीं है जिसके लिये मुझे फ़िक्र, दर्द या अफ़सोस हो। माँ तो मुझे जनतें हो मर गई थी, लेकिन वालिद ने मुझे हर तरह से पाल पोस और पढ़ा लिखा कर होशियार किया। अफसोस, दो वरस से वे भी कब्र के अन्दर सोते हैं और मुमकिन है कि मुझे भी बहुत जल्द उनके पास जाना पड़ेगा । खैर कोई हर्ज नहीं, जब कि मेरी भाशको प्यारों, दिलाराम ही मेरे हाथ से जाती रही तो अब मेरा जीना महज़ फ़ज़ल. औद. बेकार...,

मैं यही तरह तरह के ख़यालों में उलझा हुआ न जाने कितनी देर तक आप ही आप बड़बड़ाया किया, लेकिन भूक और प्यास कौ तकलीफ ने अब मुझे बहुत ही परेशान किया और मैं घबरा कर उस खौफ़नाक तस्वीर को अपने दिलपर खींचने लगा कि जिससे मेरी मौत होने वाली है!अफ़सोस्न, आबोदाने के बगैर बड़ी तकलीफ़ के साथ मेरी जान ली जायगी !!!

उस वक्त मैंने दिलही दिलमें इस इरादे को खूब पक्का कर लिया कि,--अब चाहे कुछ भी हो, लेकिन अबकी बेर अगर वह बुड्ढी यहाँ आई तो ज़रूर उसकी जान लूगा, और जैसे होगा अपने तई इस बला से छुड़ाऊँगा!अगर अब यह उम्मीद नहीं होती थी कि वह मनहूस बुड्ढो फिर यहाँ आकर अपना नापाक चेहरा दिखएगी !!!

एकाएक मैं चिहुंक उठा और चटपट मोमबत्ती के टुकड़े को