पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/२८

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जला कर उसे वहीं ज़मीन में खड़ा कर दिया और अपने जेब से उन चीज़ों को निकाल कर गौर से देखने लगा, जो मैंने उस बदज़ात नज़ीर के जेब में से पाई थीं ।

उन चीज़ो में अशर्कियाँ तो कोई देखने की चीज़ जानती थी, लेकिन, हाँ! एक ख़त, हाथी दांत पर बनी हुई एक तस्वीर, और एक छोटा सा छुरा, ये तीन चीजें ऐसी थीं, जिन पर गौर करना बहुत ज़रूरी था।

पहिले मैंने उस ख़त को बड़े गौर से पढ़ो और पढ़ने के बाद उसे बड़ी हिफ़ाज़त के साथ कुते के अन्दर फुदुही के जेब में रख लिया। इसके बाद उस छुरे पर मैं गौर करने लगा, जिसपर कुछ इबारत खुदी हुई थी और जिसकी मूठ सोने की थी और उसपर हीरे जड़े हुए थे। उसे मूंठ परे भी हीरों के जड़ाव से बड़ी खूबी के साथ किसी एक शख्स का नाम बनाया गया था ।

गरज़ यह कि उस बेशक़ीमत छुरे को भी मैंने बड़ी हिफाज़त के साथ अपनी कमर में इस तौर से खोंस लिया कि जिस में उसके गिरने का खौफ़ न रहे।

अब आई तस्वीर की बारी ! उसे भी मैंने खूब उलट पलट कर देखा। वह पांच इंच लंबे और तीन इंच चौड़े हाथीदाँत पर निहायत खूबी के साथ बनी हुई थी।

इस क़िस्से के पढ़ने वाले मेरी बात सुनकर चौकेंगे, लेकिन नहीं, मैं अपने होश हवास दुरस्त करके कहता हूं कि वह तस्वीर मेरी प्यारी । दिखा राम की ही थी। लेकिन, उस तस्वीर के देखने से जो कुछ खयाल मेरे दिलमें पैदा हुए, वे सब ऐसे कातिल थे कि जिन्होंने मेरे दिल के साथ वह काम किया, जो खंजर जिगर के साथ करता है।

एक तो यह कि मैंने वह तस्वीर नहीं बनाई थी, बल्कि सच तो यह है कि मैंने आजतक अपनी माशूक़ा को कोई तस्वीर बनाई ही नहीं । क्योंकि जब मैं उसकी तस्वीर बनाने बैठता, तब वह यो कहकर न बनाने देतो कि,--इस खिलवाड़ में फ़िजूल वक ज़ाया न करो और