पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/३२

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उस गोल कमरे में तीन कोठरियाँ थीं और ज़रूरियात के कुछ सामान वहाँ पर मुहैया थे। उस गोल इमारत के बीचोबीच जंजीर के सहारे से एक लैम्प लटक रहा था, जिसे मैंने एक, तिपाई पर चढ़कर रौशन कर दिया और जरूरी कामों से निपटकर कुए में से पानी निकाल कर मैं खुश नहाया। नहाने से मेरी तबीयत कुछ इरी होगई और सूखे कपड़े बदल कर, जो वहाँपर मौजूद थे, मैंने निहाय लज़ीज़ खाना खाया, जो बिल्कुल तीज़ा, बल्कि गरमागरम था। इसके बाद एक गिलास शराब पीकर मैं पलंग पर जा लेटा, जिसपर निहायत उम्दः और दलदार मखमली गद्दा बिछा था ।

मैं हैरान था कि इस अजीब इमारत के अन्दर, जो इतने आराम की चीज़ मुहैया हैं, वे किसके वास्ते ऐसी पोशीदा और बंद जगह में इकट्ठी की गई है ? मगर खैर, इन फजूलं बातो के सोचने की उसवक मुझे न फुर्सत थी और न अक्ल ही मेरा साथ देती थी। इसलिये मैंने उस पलंग पर सिहने की तरफ रक्खी हुई चहारदर्वेश नाम किस्से को किताव उडाली और उसी लैम्प की. साफ रौशनी में हैं पढ़ने लगा। लेकिन दो ही चार वर्क के पढ़ते ही मेरा जो ऊब गया और मैं उठकर उस कमरे में टटोलने वाली नज़र से देखता हुआ रहने लँगा। मैंने अपने भरसक बहुत कोशिश की; और अपनी अक्ल दौड़ाई, भगर इस बात का सुराग मैं जरा भी न लगा सका कि मुझे इसके अन्दर वह परीजमाल किस हिक्मत से पत्थर की चट्टान हटा कर लाई है !

तो मैं इतनी कोशिश क्यों करता था ! इसीलिये कि अगर कोई राह यहां से निकलने की मिले तो मैं अपनी जान लेकर भागूं और अपने तई इस बला से बचाऊ लेकिन जब हजार कोशिश करने पर भी मैं कुछ भी न कर सको तो लाचार हो, पलंग पर जाकर पड़ रही और थोड़ी ही देर में गहरी नींद में सो रहा ।