पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/३४

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यों कहकर मैंने अपनी दिलरुबा दिलाराम के ग़ायब होने, रातक दर्याये गोमती के किनारे नज़ीर से छेड़छाड़ होने, उसे मारकर उसके जेब से अशर्फी वग़ैरह के पाने, उसकी लाश को दर्याए गोमती में बहा देने और आसमानी चुहिया के साथ आंखों में पट्टी बंधवाकर उस कोठरी में पहुंचने के हाल को सिलसिलेवार सुनाकर मैंने कहा,--

मुझे उस कोठरी में छोड़कर आसमानी किधर गायब होगई थी इसकी मुझे कुछ खबर नहीं; लेकिन वहां पर तुम पहुंचकर अपने आलीशान कमरे में मुझे लेगई थीं, यह मुझे याद है। फिर जब घन्टी बजने की आवाज़ आई तो तुमने मुझे पर्दे की आड़ में खड़े होने का हुक्म दिया और मैं वहां खड़ा रहुर । थोड़ी ही देर बाद मेरे पीछे कई दुर्वाजा खुला और किसी ने जबर्दस्ती मुझे अपनी ओर खेचकर मेरी खिों पर पट्टी बांध दी और जब मेरी पट्टी दूर हुई तो मैंने अपने लंड उसी मनहूस सहखाने में पाया, जहां से तुम्हारे कुदसों की बदौलत मेरी रिहाई हुई और अब मैं बड़े आराम में हूं।”

इसके बाद मैंने उस परीजमाल से यह भी कह दिया कि वह शैतान बुड्ढी मुझ से कैसे कागज़ पर दस्तखत कराया चाहती थी ! पर मैंने उस कागज़ पर दस्तखत न किया और उसे जला डोला ।'

मेरी बात सुनकर उस परीजमाल ने कहा,--“खैर, इस बारे में अभी में तुम से बहुत कुछ बात करूंगी और अपना पता भी तुम्हें बतलाऊंगी; लेकिन पेइतर मैं उस खेजर, तस्वीर और खेत को देखा चाहती हूं, जिन्हें तुमने नज़ीर के जेब में से पाया है और जो अबतक तुम्हारे पास मौजूद हैं। हां, उन अशर्फिर्यों के दिखलाने की कोई ज़रूरत नहीं है, क्योंकि उनसे मुझे कोई मतलब नहीं।"

उस परीजमाल की बातें सुनकर मैंने अपनी फङ्खही के जूब में से खत और तस्वीर; वो कमर में से जर निकाल कर उस परीजालं के आगे रख दिया। लेकिन ज्यों ही उसने उस खत, तस्वीर और खंजर पर वैज़र डाली, बेतहाशा उसके मुंह से एक हरी, चीख