पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/४२

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  • लखनऊ की कब्र * से जरा मुस्कुराकर कहा, लेकिन, मुझे यह तो बतलाओ कि अगर दिलाराम और तुम दोनों की मैं वैसा ही प्यार करू, जैसा कि लोग अपनी आंखों की दोनों पुतलियों पर मुहब्यत रखते हैं तो इसमें तुम्हें श्या उन्न हो सकता है? :: वह बोली,-अजी! हरज़त : कहीं दिल भी दो हुआ है ! पस,

यह सरासर गैरमुमकिन है कि एक शख्स को नज़त्रियों को यकसय • प्यार कर सके।” . . . . " मैंने कहा,“त्ये या जिनके यहाँ एक में ज़ियादह नाज़नियां हैं; वे उन सभों के साथ यकस मुहब्बत नहीं करते। वह बोली,-"नहीं, हुर्गिज़ नहीं, क्योंकि ऐसा होही नहीं सकतई - पुस, अभी से अच्छा है कि हमारे तुम्हारे दिल की सफ़ाई हो जाय और आइन्दे के लिये कोई खरखुशी बाकी न रह जाय ! १. मैने #हा, “तुम क्या सफाई चाहती हो ?? • वह बोली,--*सौस की सफ़ाई।” मैंने कहा,-"इसका क्या मतलब हैं, खुलासे तौर से कहो ?” हं बोली, “यहीं कि अगर तुम्हें मुझ से ताल्लुक रखना हो तो दिलाराम की खयाल अपने दिल से एक दम भुला दो । .:: मैंने कहा,“यह तो नहीं हो सकता है .... - वह वोली, तो फिर अब मुझसे तुम किसी किस्म की । उम्मीद न रखना । । मैने कहा, यह तो, बीब ! तुम नाहक मुझपर जुल्म करती " हो । अजी ! बी ! मैं तुम दोनों को अंकस प्यार करेंगा ।" .. वह बोलो,–“ लेकिन, मुझे ऐसे प्यार की जरूरत नहीं है। मैने सिर्फ इतना तुमसे इसीलिये कहा कि तुम मुझसे मुहब्बत करने १६ आमादा होरहे थे, वरना मुझे इन बातों के कहने से कोई मतलब ३ था और न अव हैं।" इतना कह कर और तमुक कर जब वह अंश पर से उठने लगीं। ' । • ६.५ " :