पृष्ठ:लखनउ की कब्र - किशोरीलाल गोस्वामी.pdf/४४

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सातवीं बयान । | इसी तरह देर तक मैं अपने खयालों की उलॉन में उलझा रहा, फिर मुझे नींद आगई और मैं सो गया। कितनी देरतक मैं सोया रहा; इसका बयान मैं नहीं कर सकती, लेकिन जब उस परोजमाल ने मुझे आकर जगाया तो मुझे मालूम हुआ कि सुबह होने में अभी दो तीन घन्टे की देर है । उसके जगाने पर मैं उठ बैठा और मुंह हाथ धोकर पलंग पर आ बै, उसी पर वह एरीजमाल भी आज मेरे बगल में बैठ गइ और बड़ी मुहब्बत से मेरे गले में बाहें डालकर उसने मेरे गालों का बोसो लेलियाँ : | अल्लाह आलम ! उसे कंतं मैं सोयीं थी, या जागा, इसकी मुझे कुछ भी स्वबंर में रही और मस्ती के आलम में आकर मैंने भी उसे.. अपने सीने से लगा कर देतहाशा बसे लेने शुरू कर दिए। इसके अलावे जब मैंने कुछ और हाथ पैर बढ़ाने शुरू किए तो वह झिझके । र एलंग से नीचे उतर गई और पासहीं रक्खी हुई तिपाई पर दैठे, मुस्कुरा कर बोलीं,* धस, दोस्तै ! आज यहाँ तक रहने दो, केल फिर इसी वक्त मैं तुमसे मिलेंगी, उस वक्त तुम अपने दिल बिल्कुलं अरमान निकाल लेना ।" • उसके हटते ही मुझे गौथी पारा मार गया, जिस से मेरा सारा बदन सुन्न हो गयी और कार्ड को सूरत के भनिन्द मैं पर पर बैठा बैठा उसका चेहरा निहार किया। मुझे छुपचाप सन्नाटे के आदर्भ मैं देखकर वह हंसपड़ी और बोली, अह, दोस्त ! तुम इतने सुरत क्यों पड़ गए ? मैंने कहा, क्या करू, तुमने दिलरुबा ! मेरे दिल का देतरह खून किया, और स्चून करके भी उसमें ऐसी बेमौकेआग लगादी कि जिस की जलने से मुमकिन है कि कुछह लहजे में मेरी रूह खाक होजायगी।"